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________________ कृति और उसकी विशेषता प्रस्तुत कृति के रचयिता अज्ञात हैं। संभवतः जैन मुनि या जनयति या जैन विद्वान होना चाहिए । विषय के प्रतिपाद्य से स्पस्ट ज्ञात होता है। इसमें दो खड़ी पाई (1) से लेकर ज्ञ वर्ण तक के सारे वर्णों का आलम्बन लेकर जैन दर्शन का प्रतिपादन किया गया है । अ और आ, इ और ई उ और ऊ, ऋ और ऋ, ए और ऐ, ओ और औ, अं और अ: का एक साथ विवेचन है। यह कृति हस्तलिखित पत्र के दोनों ओर लिखी हुई है। प्रतिलिपिकार तेरापंथ संघ के मुनि श्री फूलचंदजी स्वामी है। उन्होंने विक्रम संवत् १९९० वैशाख कृष्णा ११ को जयपुर में प्रतिलिपि पूर्ण की थी। इसकी मूल भाषा राजस्थानी मिश्रित गुजराती है। जो कई शताब्दि पूर्व प्रचलित वर्णमाला का प्रारूप है। विवेचन में जैन दर्शन का संक्षिप्त प्रतिपादन है । जिसे एक रूपक द्वारा प्रस्तुत किया गया है । संसारी जीवों को एक गहरे रूप में स्वीकार कर उनको सिद्धक्षेत्र तक की यात्रा कराई है। कुएं में रहने वालों की दशा, कुएं से निकलने वालों की स्थिति, जैसे--कुएं से निकलने का प्रयास करता करता ऊपर चढ़ कर फिसलन से वह वापस कुएं में गिर जाता है । जो साहस कर कुएं से निकलता है उसे मार्ग में विषम घाटी को पार करना होता है। सिद्धनगर से पहले प्रधान (दीवान) के घर में ठहरता है, और वहां उसकी सेवा करता है। जिससे वह प्रसन्न होकर अपनी लड़की की शादी उससे कर देता है, सिद्धनगर जाने के लिए दो गाड़ी का सहयोग देता है, जोतने के लिए दो बैल देता है, मार्ग में यात्रा के लिए शिक्षा देता है, अंत में सिद्धनगर पहुंचा देता है। इस प्रकार कुएं से सिद्धनगर तक की यात्रा का रूपक के रूप में वर्णन है। कृतिकार ने रूपक में जैन दर्शन का सम्यक् प्रतिपादन किया है। विद्वान् लेखक ने वर्णमाला में जिस प्रकार जैन दर्शन को उंडेला है वह उसके वैदूष्य का परिचायक है। कृति रोचक है, पाठकों को जैन दर्शन का बोध दे सकती है। वर्णमाला और प्रतिपादन मूल । ॐ नमः - भगवंत श्री महावीर लेसाले बेठा देखी ने इंद्र वामण नो रुप करी आवी ने श्री वीर प्रभु ने नमस्कार करी सर्वलोक ने चिमतकार उपजावा ने निमित भले ना अर्थ पूछ्या। श्री वीर प्रभु कहे छे-.. हिंदी-भगवान् श्री महावीर को पाठशाला में बैठे हुए देख कर इंद्र ब्राह्मण का रूप बनाकर पाठशाला में आया। महावीर प्रभु को नमस्कार किया। सब । जनता को चमत्कार पैदा करने के लिए प्रश्न पूछे । भगवान् ने उत्तर दिया मूल –बे लीटी ते स्यूं । जीव नी बे राशि सिद्ध ते अकर्मी संसारी कर्मी ॥१॥ हिंदी-दो खडी लकीर का अर्थ क्या है ? भगवान् ने उत्तर दिया-जीव की दो राशि है --- (१) सिद्ध (२) संसारी। सिद्ध कर्मों से मुक्त होते हैं और संसारी कर्मों तुलसी प्रज्ञा २९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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