SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कि सम्प्रति, दशरथ का पुत्र और उत्तराधिकारी था। सम्प्रति का ज्येष्ठ पुत्र विजय और उससे छोटा शालिशूक था।' ऐसे स्थूल विषयों में भूल करने वाले पुराणों की सूक्ष्म बातें कैसे समझेंगे ? पुराण व्यक्तिशः शासनावधि अभिषेक से शुरू करते हैं और शासनान्त तक के वर्ष गिनते हैं। ऐसी हालत में किसी राजा ने पिता की मृत्यु के बाद यदि सत्ता कार्यतः पा भी ली हो किन्तु गृहकलह आदि कारणों से अभिषेक में देरी हो तो अभिषेक-पूर्व के वर्ष उसकी शासनावधि से छूट जाते हैं। अशोक के अभिषेक में ४ वर्ष देरी हुई थी अतः उसकी शासनावधि में वे चार वर्ष नहीं गिने गये। इसी से सभी पुराण मौर्यों की शासनावधि १३७ वर्ष बताते हैं पर योगफल १३३ ही आता है। किन्तु अभिषेक के बाद कोई राजा थोड़े समय किसी सत्तापहारी द्वारा पदच्युत होकर पुनः राज्य पाता है तो पुराण पूरा काल उसकी शासनावधि में ही गिनेंगे। जहां तक राजवंश की शासनावधि का प्रश्न है पुराण , उसके आरम्भ होने से उसके अन्त का काल गिनते हैं। बीच में यदि किसी कारण उसका शासन खंडित होता है तो उसकी उपेक्षा की जाती है। शिशुनाग राजाओं की व्यक्तिशः शासनावधि ३४६ वर्ष के लगभग आती है जबकि पूरे वंश की अवधि पुराण एक स्वर से ३६२ वर्ष बताते हैं। इसका कारण यह है कि मगध बीच में दुर्बल और पराधीन हो गया था। । पुराणों की इस पद्धति के अनुसार यदि सचमुच काण्ववंश के समय मगध पर १० वर्ष शकों का कब्जा रहा होता तो पुराण वे वर्ष किसी राजा के राजकाल में न जोड़कर व्यक्तिश: शासनावधि के योगफल से राजवंश की शासनावधि १० वर्ष अधिक दिखाते हैं। किन्तु सभी पुराण ४५ वर्ष ही कहते हैं। यहां तक कि वायु, जिसमें योगफल ५५ आता है वह भी कहता ४५ ही है। यह भी चिन्त्य है कि शक-शासन का आरम्भ तो नारायण के समय हुआ पर ४ वर्ष जुड़ गये पहले राजा के काल में और छः अन्तिम राजा के काल में ! ऐसी अनहोनी भी कहीं किसी ने सुनी है ? परस्पर-विरोध ध्रुव जैसे विद्वानों की स्मरणशक्ति बड़ी दुर्बल है जिससे अपने दीर्घकाय लेखों में वे पहले जो बात लिखते हैं बाद में उसे भूल जाते हैं और उससे अनमिल, विरुद्ध बातें लिखना शुरू कर देते हैं। युगपुराण का शक-प्रसंग इसका अपवाद नहीं है। इस सम्बन्ध में युगपुराण का जो पाठ उन्होंने अपने संशोधन के साथ पेश किया है वह उनकी इस मान्यता के अनुकूल नहीं है, उससे तो सारी घटना शुंग-युग की प्रतीत होती है : वसुमित्रात् ततो राज्ञः प्राप्ता राज्यमथौद्रकः ॥ भीमैः स शकसंघातविग्रहं समुपेष्यति । ततः शकै रणे घोरे प्रवृत्ते स महाबलैः ॥ नृपः पृषत्कपातेन मृत्युं समुपयास्यति । खंड २१, अंक ३ २७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy