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________________ शक-आक्रमण और शकाधिकार __ मगध के राजवंशों में काण्ववंश ही ऐसा है कि जिसका शासनकाल शान्ति से बीता और जिसके बारे में किसी तरह के विवाद की गुंजाइश नहीं थी। किन्तु दीवान बहादुर के० एच० ध्रुव की कृपा से विवाद उत्पन्न हो गया है। उन्होंने युगपुराण सम्बन्धी अपने एक लेख में इस प्रकार का मत प्रगट किया है कि काण्व राजा नारायण के शासन का अन्तिम वर्ष ३५ ई० पू० है । उसी वर्ष शक अम्लाट का पाटलिपुत्र पर आक्रमण हुआ जिसमें नारायण निहत हुआ और दश वर्ष के लिए मगध पर शकों का कब्जा हो गया । अन्तिम शक राजा कलिंगाभियान में, २५ ई० पू० में सातवाहन राजा, के हाथ मारा गया। इसे सुनकर सुशर्मा लोटा, चार वर्ष पाटलिपुत्र पर शासन कर २१ ई० पू० में वह सातवाहन राजा द्वारा पराजित और निहित हुआ। उसे हराने वाला राजा ध्रुव की समझ में सम्भवतः अन्ध्रवंश का पन्द्रहवां राजा पुलुमायी प्रथम था और अम्लाट शक राजा अजेस (५५-११ ई०१०) का कोई प्रादेशिक अधिकारी रहा होगा।' ध्रुव उसी लेख के सातवें परिशिष्ट में काण्ववंश के बारे में निम्न सारणी पेश करते हैं :राजा मत्स्य ब्रह्माण्ड वायु प्रकृतसंख्या १. वसुदेव ९ वर्ष ५ वर्ष ९ वर्ष ५ वर्ष २. भूमिमित्र १४ वर्ष २४ वर्ष २४ वर्ष ३. नारायण १२ वर्ष १२ वर्ष १२ वर्ष __(शक-शासन १० वर्ष) ४. सुशर्मा १० वर्ष ४ वर्ष १० वर्ष इस पर ध्रुव का कहना है कि शकों के पहले तीन राजाओं ने कुल ४ वर्ष और बाकी ने ६ वर्ष शासन किया और ये संख्याएं वायुपुराण में पहले और अन्तिम राजा की शासनावधि में जुड़ गयी है जिससे योगफल ५५ हो गया है। मत्स्य ने भी वही भूल की है पर भूमिमित्र की शासनावधि से १० वर्ष घटाकर योगफल ठीक रखा है।' ध्रुव के इन विचारों से अनेक फूल-फल गत छः दशकों में निकले हैं और इतिहास के क्षेत्र में भ्रम की उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है अतः ध्रुव के विचारों की परीक्षा आवश्यक २४" पुराण-पद्धति से ध्रुव को अज्ञता ध्रुव प्रवाह के अनुकूल चलने वाले विद्वानों में से एक हैं। जायसवाल उनके पूर्वसूरि और दीनेशचन्द्र सरकार उनके उत्तरसूरि हैं। इन विद्वानों को पुराणों की जानकारी अधूरी है और उसे पूरी करने की जरा भी आवश्यकता इन्होंने नहीं समझी । इसीलिए ये विद्वान् बड़ी भद्दी भूलें करते हैं। दशरथ , सम्प्रति और शालिशूक को भाई-भाई कहना और यह मानना कि कुणाल के बाद मौर्य-साम्राज्य दो टुकड़े हो गया था जिनमें से पश्चिमी टुकड़े का राजा सम्प्रति, पूर्वी का दशरथ था ऐसी ही भूलें हैं । पाजिटर सम्पादित सामग्री के आधार पर हमने सिद्ध कर दिया है तुमसी प्रमा २७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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