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जैनदर्शन में सल्लेखना
विनोदकुमार पाण्डेय
सल्लेखना शब्द सत्+लेखना इन दो शब्दों के मेल से बना है । 'सत् अर्थात् सम्यकप्रकारेण लेखना इति सल्लेखना' । लेखना अर्थात् सम्यक्प्रकारेण काय कषययोः कृषीकरणं क्षीणकरणं, नष्टकरणं वा सल्लेखना। अर्थात् भलीभांति काय और कषायों को क्षीण करना या नष्ट करना सल्लेखना है। तत्त्वार्थसूत्र में' -"मरणान्तिकी सल्लेखना योषिता" कहा गया है। अर्थात् मरणकाल में प्रीतिपूर्वक धारण करने वाला व्रत सल्लेखना है । समाधि-मरण, संन्यास-मरण, अन्त्यविधि, पण्डित-मरण, अंतक्रिया, मृत्युमहोत्सव, आर्याणां महाऋतु: आदि सब सल्लेखना के ही पर्याय हैं। सल्लेखना में जब सम्यक् प्रकार से काय और कषायों को क्षीण कर दिया जाता है तब विभिन्न विषय भ्रामरी वृत्ति वाला चित्त स्थिर एवं शान्त हो जाता है। इसे एकाग्रता या समाधि कहा गया है। मरण का अर्थ देह का परित्याग एवं शारीरिक ममत्व का परिहार है । मृत्यु की समीपता की अनुभूति से अनशनपूर्वक देहममत्व तथा उपाधिजीवन की साधन सामग्री का परित्याग करना ही सल्लेखना-मरण या समाधि-मरण है। चूंकि यह मरणान्तिकी व्रत या नियम ज्ञानी जनों के द्वारा ही पालनीय है या ज्ञानी जन ही इस साहसपूर्ण मृत्यु का आह्वान कर सकते हैं इसलिए इसे पण्डित-मरण भी कहा जाता है। मनुष्य जीवन की यह अन्तिम विधि, नियम, व्रत और क्रिया होने से अन्त्यविधि, अंतक्रिया या व्रतान्त कहा जाता है ।
आचार्य समन्तभद्र ने इसे 'सकाम मरण' कहा है। 'सकाम' शब्द यहां स्वेच्छापूर्वक मृत्यु के अर्थ में प्रयुक्त है । सल्लेखना वह पुनीत धर्माचरण है, जो मानव मात्र को सुष्ठ रीत्या मरणोन्मुख होने पर मृत्यु का पाठ पढ़ाता है। समाधिमरण वस्तुतः साधक के अन्तर्मन की चिर पोषित साध की मंगलपूर्ति या पूर्णाहुति है । जब साधक जीवन की अन्तिम वेला में अथवा किसी आसन्न संकट की अवस्था में इधर-उधर के विक्षेपविकल्प, माया-ममता, वैभव-विलास एवं ललाम-लालसा से पृथक् होकर अपनी स्वीकृत .साधना या आत्म मंथन के प्रति एकरूप हो जाता है, तब वह समस्त पाप, ताप और संताप, समग्र आसक्ति एवं प्रीति से विमुक्त होकर अनशनपूर्वक देहाध्यास एवं शरीर के मोहममत्व का परित्याग कर देता है। वस्तुतः साधक के जीवन की इसी उच्च पुनीत एवं विशुद्ध स्थिति का नाम सल्लेखना-मरण या समाधि-मरण है।
दूसरे शब्दों में श्रावक के बारह व्रतों (पांच अणुव्रत और सात शीलवत) के जीवनपर्यन्त पालने के पश्चात् इनके परिणाम या फलप्राप्ति के लिए जिस क्रिया का आलंबन किया जाता है उस क्रिया का नाम सल्लेखना है। सल्लेखना जीवन के संपूर्ण कर्मों की
बंड २१, अंक ३
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