SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्मिलित है। महावीर के अनुसार मनुष्य जीवन का लक्ष्य यदि दुःख से मुक्ति है तो भला यह कैसे संभव है कि वह अन्य किसी भी जीव को दुःख पहुंचाये। अपने सुखदुःख की अनुभूति की तुला से उसे पशुओं के सुख-दुःख को भी समझना चाहिए । जैन दर्शन में शान्ति का एक अन्य पक्ष समाज में शान्ति बनाए रखना है। समाज में अशांति का कारण विषमता और भेद-भाव है । परिग्रह की प्रवृत्ति और भोग-विलास है। इसमें निश्चित रूप से हिंसा और शोषण व्याप्त है। जब तक हम समाज में ममत्व की जगह समत्व और हिंसा के स्थान पर अहिंसा को वरीयता नहीं देते, समाज में शान्ति स्थापित नहीं हो सकती। इसीलिए जैन शांति स्तवों में शान्ति को 'निरुपद्रवी, निवृत्ति निर्वाण जननि', 'स्वस्तिप्रदे' और 'शुभावहे' आदि कहकर संबोधित किया गया है। संदर्भ १. प्राकृत हिंदी कोष, १८. आयारो, उपरोक्त, गाथा-१.११० वाराणसी, १९८७, पृ. ७९० १९. वही, गाथा १.२९.१११ २ समण, सुत्तं, वाराणसी १९८९, गाथा, २०. वही गाथा १.११३ २१. वही गाथा १.११६ ३. वही, गाथा, १३६ २२. देखिए, उपासक अभय देव वृत्ति १.४७ ४. वही, गाथा, ६१७ २३. आयारो, उपरोक्त, १.१५२ ५. सूत्र कृतांग, १.११.३६ ६. आयारो, जैन विश्व भारती, २४. वही, १-२५, ४८, ७९,१०७, १३४, १५८ ___ लाडनूं, गाथा, २.९६ २५. वही, १-३३, ६४, ८८ ७. वही, गाथा, २.१८१ ८. वही, गाथा, १.१४६ २६. वही, १-४४, ७५, १०३, २१, १३० ९. देखें, मंदिर मार्गी सं. २७. वही, १.२७ प्रदापों में शान्ति स्तव । २८. वही, १.१४६, १४७ १०. समणसुत्तं, उपरोक्त, गाथा, १२७ २९. वही, टिप्पणी ३६ पृ. ६६ ११. वही, गाथा, १२८ . ३०. वही, १.१४८ १२. वही, गाथा, १२९ ३१. देखें, कंटम्पररी पीस रिसर्च १३. आत्मानुशासन, बम्बई (संपादित) वि. सं. १९८६ गाथा २५२ नई दिल्ली १९८२, पृष्ठ, ९४ १४. भगवती सूत्र, १-९ ३२. आयारो, उपरोक्त, २.४१-४२ १५. देखें, सागरमल जैन, ३३. वही, २.४६ ___ "जैन कन्सैप्ट ऑव पीस" ३४. वही, २.४९-५६ १६. आयारो, उपरोक्त, गाथा-२.३३ ३५. वही, २.६३-६४ १७. समण-सुत्तं, उपरोक्त, गाथा-१२६ और ३६. वही, २.६५,६८,६९ १२७ ३७. वही, टिप्पणी, १३ पृ.१११ -पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई टी आई मार्ग, करौंदी वाराणासी (उ. प्र.) २२१००५ २६० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy