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________________ निषिद्ध घोषित किया था। प्रकृति की संरक्षा के हेतु विष-वाणिज्य निषिद्ध बताया गया है । उपलक्षण से इसमें हिंसक अस्त्र-शस्त्रों का व्यापार भी सम्मिलित हो जाता है। विडम्बना है कि जो व्यवसाय जैन दर्शन में निषिद्ध बताए गए हैं वे ही आज सर्वाधिक लाभप्रद समझे जा रहे हैं । विषाक्त रसायनों और आधुनिक आणविक तथा नाभकीय यंत्रों काव्यापार आज सर्वाधिक फलफूल रहा है और स्पष्ट ही यह समस्त मानव अस्तित्व के लिए ही एक बड़ा खतरा बन गया है। जैन दर्शन में इस खतरे से बचकर शान्ति से रहने का एक सरल उपाय यह बताया गया है कि विष और पीड़न यंत्रों या संहारक शस्त्रों का व्यवसाय हो न किया जाए । क्या यह वर्तमान में निःशस्त्रीकरण की मांग को पूर्व . पीठिका नहीं है ? ___ आज शिक्षा जगत् में पर्यावरण और प्रदूषण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है । पर्यावरण संबंधी शिक्षा के मूलभूत सिद्धांत हैं .. १. प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की वृत्ति पर अंकुश २ प्रकृति को स्वयं का एक भाग समझना और ३. प्रकृति के साथ समरसता से रहना । जैन आचार शास्त्र इन तीनों ही सिद्धांतों को स्वीकार करता प्रतीत होता है । समरसता से रहना ही समत्व है। पशुजगत् के साथ शान्ति जैन दर्शन में ६ प्रकार के जीव बताए गए हैं-पृथ्वीकायिक जीव, जल कायिक जीव, अग्निकायिक जीव, वनस्पति कायिक जीव, त्रसकायिक जीव तथा वायुकायिक जीव । यह एक बड़ी विडम्बना है कि मनुष्य जो स्वयं भी एक जीव है, अन्य जीवों को सताता मारता है । संहारक शस्त्रों से उनकी हिंसा करता है । इन सभी प्रकार के जीवों को शस्त्र से भेदन-छेदन करने से, उन्हें वैसा ही कष्ट होता है जैसा स्वयं मनुष्य को होता है। फिर भी मनुष्य नाना प्रकार के शस्त्रों से नाना प्रकार के जीवों की हिंसा करता है। भगवान् महावीर कहते हैं हिंसा निश्चित ही ग्रन्थि है, मोह और मृत्यु है यह नरक है । अतः वे उपदेश देते हैं कि व्यक्ति किसी भी प्रकार के जीव को मारने हेतु समारंभ नहीं करे, दूसरों से समारंभ न करवाए और इस प्रकार समारंभ करने वालों का अनुमोदन भी न करे ।" ऐसा करना वर्तमान जीवन के लिए, प्रशंसा और पूजा के लिए, जन्म-मरण के मोचन के लिए, दुःख प्रतिकार के लिए अहितकर है। हिंसा एक ऐसा अज्ञान है जो सदैव अहित ही करता है। __ महावीर के उपदेश से स्पष्ट है कि जीव हिंसा न करने के पीछे जो दृष्टि है वह शांति की भावना है । मानव जीवन जो वस्तुतः प्रशंसा, सम्मान और पूजा के लिए है, जन्म-मरण से मुक्ति के लिए है और दुःख के निवारण के लिए है - एक शब्द में शांति प्राप्त करने के लिए है.---उसमें हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है । हिंसा निश्चित ही वास्तविक ज्ञान का अभाव है, एक ऐसा ज्ञानाभाव है जो शांति के हित में न होकर, उसके विरुद्ध कार्य करता है। प्रत्येक ज्ञानी पुरुष जो इस बात को समझ लेता है कि हिंसा जीवन-मूल्यों के लिए अहितकर है (अहित-बोध) और जिसे इस प्रकार यह ज्ञान हो जाता है कि हिंसा २५६ तुलसी ज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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