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________________ १. वार्ता ___ अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में और अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अर्थ में वार्ता एक वैधानिक, व्यवस्थित तथा प्रशासनात्मक प्रक्रिया है, जिसकी सहायता से राज्य सरकारें अपनी संदिग्ध शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक दूसरे के साथ अपने सम्बन्धों का संचालन करती है और मतभेदों पर विचार-विमर्श, उनका व्यवस्थापन तथा समाधान करती है। २. वाद-विवाद इस विधि में दोनों पक्षों को एक ऐसा मंच प्रदान किया जाता है जहां वे स्वतंत्र रूप से लिखित या मौखिक अपने दावे या शिकायतें प्रस्तुत कर सकते हैं तथा द्विपक्षीय कूटनीति के माध्यम से ऐसी स्थिति में पहुंचा जा सकता है जहां विवाद के समाधानार्थ कोई समझौता हो सके । ३. विवाचन विवाचन का उद्देश्य दो विरोधी पक्षों में अविश्वास व अन्य रुकावटें दूर कर परस्पर एकता स्थापित करना है । विवाचन न्याय निर्णय है, इसमें समझौते का स्थान नहीं होता। प्रो० ओपेनहीम के अनुसार-विवाचन का अर्थ है मतभेदों का समाधान कानूनी निर्णय द्वारा किया जाए। यह निर्णय दोनों पक्षों द्वारा निर्वाचित एक या अनेक पंचों के न्यायाधिकरण द्वारा होता है जो अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से भिन्न प्रकृति का है। ४. सामूहिक सौदेबाजो यह दो पक्षों के बीच विचार-विमर्श और बातचीत का एक ढंग है जिसमें आपसी समझौते द्वारा किसी समस्या का द्विपक्षीय हल खोजा जाता है । उपर्युक्त कूटनीतिक विधियों के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कलह-शमन हेतु मंत्रणा (अनुनय) आदि विधियों का भी प्रयोग किया जाता है । कुछ अन्य सुझाव इस प्रकार हो सकते हैंक्षेत्र निराकरण हेतु सुझाव १. वैयक्तिक व्यापक दृष्टिकोण उपवास व प्रायश्चित्त साक्षात् बातचीत को प्राथमिकता २. प्रजातीय • वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर जातीय भेद___ भाव दूर करें • शिक्षा-नीति में गतिशील परिवर्तन • संयुक्तराष्ट्र संघ व एन० जी० ओ० के प्रयास ३. सामाजिक • उच्चकोटि के लक्ष्यों के लिए सहकारी ढंग पर कार्य • उन आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक परि १९८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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