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________________ का शोषण होगा । अजित पदार्थों या हिंसा को जन्म देगा । सुकरात ने संतुष्ट नहीं होंगे, वे अपनी इच्छाओं चाहेंगे" 'परिणाम होगा - युद्ध । दर्शनानुसार इच्छा विस्तार समस्त बुराइयों की जड़ है । इच्छाओं की पूर्ति हेतु दूसरों संरक्षण हेतु शास्त्रीकरण होगा जो अन्ततः युद्ध भी कहा था - लोग सरल जीवन पद्धति से का विस्तार चाहेंगे दूसरे भी ऐसा ही मूलतः संघर्ष तब होता है जब इच्छा पूर्ति हेतु विरोधी क्रियाएं घटित होती हैं । जब दो व्यक्ति वह कार्य करना चाहें जो परस्पर असंगत हैं तो तनाव स्वाभाविक है क्योंकि इससे व्यक्ति, समुदाय और राष्ट्रों की इच्छा पूर्ति में बाधा उत्पन्न होती हैं । समग्र इच्छाओं की पूर्ति के प्रयत्न तो दूसरों की अतृप्ति की कीमत पर ही किये जा सकते हैं । सामान्य रूप से संघर्ष के तीन आधार वर्णित किये जा सकते हैं - ( १ ) एक या अधिक पक्ष, (२) पक्षों के बीच सम्बन्ध और ( ३ ) वह व्यवस्था या तंत्र जिसमें ये पक्ष कार्य करते हैं । अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों में संघर्षों के मुख्य कारण वर्गों के बीच तनाव, प्रजातीय स्थितियां तथा सांस्कृतिक प्रारूपों की भिन्नता है जबकि अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों में व्यक्तियों का राष्ट्रीय चरित्र व राजनैतिक ढांचा मुख्य कारण बनते हैं । विभिन्न पक्षों के बीच सम्बन्ध यदि असमानताओं पर आधारित हों, जैसेराजनैतिक शक्ति में असमानता, सम्पत्ति का असमान वितरण, विरोधी धर्म और वैचारिक परम्पराएं, मूल्यों की भिन्नता आदि, तो ये भी संघर्ष के मुख्य कारण बनते हैं । जिस व्यवस्था में विभिन्न पक्ष कार्य करते हैं, उसमें खुली राजनैतिक एवं स्वतंत्र न्यायायिक व्यवस्था अपेक्षित है। ऐसी व्यवस्था मतभेदों को दूर करने के साधन उपलब्ध करवा सकती है तथा असमानता एवं मूल्य सम्बन्धी भेदों को और अधिक गहरा होने से बचा जा सकता है तथा इस तरह संघर्ष के संस्थाकरण को रोका जा सकता है । व्यवस्था के विभिन्न पक्षों में एकता, उनकी परस्पर निर्भरता के स्तर, संगति एवं समानता पर निर्भर करती है । जितनी अधिक एकता होगी, असंतुष्टि उतनी ही कम होगी तथा संघर्ष भी कम होंगे । परस्पर निर्भरता के अभाव में एकता का भी अभाव होगा तथा असंतुष्टि एवं संघर्ष अधिक होंगे । व्यवस्था के आंतरिक कारक जैसे – वैचारिक भिन्नताएं, आर्थिक कारण, नौकरशाही आदि भी संघर्ष के लिए आधार बनते हैं । संघर्ष के प्रकार प्रो० सिम्मेल ( Simmel ) ने संघर्ष को चार प्रकारों में विभाजित किया है (१) युद्ध, (२) पुश्तैनी कलह, (३) मुकदमे बाजी और ( ४ ) मत वैभिन्य का संघर्ष । प्रो० गिलीन एवं गिलीन ने संघर्ष के पांच प्रकारों की व्याख्या की है १९० Jain Education International For Private & Personal Use Only 'तुलसी प्रशा www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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