SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. व्यक्तिगत संघर्ष व्यक्तिगत संघर्ष कहा जा सकता है शत्रुता आदि होती है तथा स्वयं के अथवा नष्ट तक कर देने की तत्परता होती है । परस्पर विरोधी लक्ष्यों को लेकर दो व्यक्तियों के बीच होने वाले संघर्ष को । संघर्षशील लोगों में व्यक्तिगत घृणा, द्वेष, क्रोध, हितों के लिए दूसरे को शारीरिक हानि पहुंचाने व्यक्तिगत संघर्ष आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार के होते हैं। आंतरिक कारकों व्यक्ति की कुण्ठा, स्वार्थवृत्ति तथा रुचियों की प्राथमिकता के निर्धारण का प्रश्न प्रमुख कारण होते हैं । बाह्य कारकों में व्यक्तियों की रुचियों में टकराहट ही प्रमुख रूप से कारण बनता है । २. प्रजातीय संघर्ष कभी-कभी कुछ प्रजातियां दूसरों पर शासन करना अपना अधिकार मानती है। जिसके परिणामस्वरूप अन्य प्रजातियों से उनका संघर्ष हो जाता है । अमेरिका में नीग्रो और श्वेत प्रजाति, श्वेत और जापानी प्राजीय तथा अफ्रिका में श्वेत और काली प्रजाति के बीच हिंसात्मक घटनाएं होती रही हैं । प्रजातीय श्रेष्ठता या हीनता इस प्रकार के संघर्ष का प्रमुख कारण बनती हैं। प्रगति के बावजूद प्रजातीय भेदभाव - राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में कानून के रूप में तथा व्यवहार में जातीय भेदभाव के रूप में विद्यमान है । प्रजातीय भेदभाव-भेदभाव करने वाले तथा उससे प्रभावित दोनों ही पक्ष के लिए हानिकारक है । प्रजातीय भेदभाव के अनेक रूप हैं । कहीं पर यह सरकारी नीतियों से संपुष्ट है तो कहीं प्रच्छन्न रूप में, जिससे विभिन्न वर्गों के बीच विषमता पाई जाती है । राजनैतिक दृष्टि से विश्व के किसी भी देश में प्रजातीय भेदभाव को मान्यता नहीं है परन्तु कुछ राष्ट्रों में वहां की नीतियों एवं परिस्थितियों के कारण सभी लोगों को मत देने, सरकारी सेवा में प्रवेश पाने एवं सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है । आर्थिक क्षेत्र में प्रजातीय भेदभाव के परिणामस्वरूप कुछ विशेष प्रजाति के लोग कम वेतन पर मजदूर के रूप में सदैव उपलब्ध रहते हैं । प्रजातीय भेदभाव सार्वजनिक स्थान, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं, सामाजिक सुरक्षा एवं पारस्परिक सम्बन्धों में भी देखा जा सकता है । सांस्कृतिक क्षेत्र में जातीय भेद-भाव जीवन स्तर की विभिन्नता से जन्म लेता है । भेदभाव की यह भावना उन समाजों में अधिक पाई जाती है जहां सांस्कृतिक, सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में बहुत अधिक विरोधाभास होता है । नस्ल, रंग तथा वंश की दृष्टि से जिन राष्ट्रों में अलगाव की भावना है एवं जहां संस्कृति, रीति-रिवाज एवं परम्पराओं के कारण भिन्नताएं है, वहां की स्थितियां वास्तव में ही सोचनीय है । जातीय पृथक्करण की नीतियां विश्व के लिए एक बड़ा कलंक है । ३. वर्ग-संघर्ष वर्ग संघर्ष का इतिहास मानव जाति का इतिहास है । प्राचीनकाल में मालिक खंड २१, अंक २ १९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy