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________________ को दोषी ठहराना ठीक नहीं है । परिवार जनों, मित्रों या पड़ोसी के किसी व्यवहार को लेकर आपस में वाद-विवाद करना अपने को उलझन में फंसा देना है। किसी भी दशा में एक दूसरे को लज्जित करने वाली भावना मन के टुकड़े-टुकड़े कर देती है। आर्थिक संकट में घबराना नहीं है, बल्कि सामान्य दशा से अधिक प्रसन्न रहना है। यदि पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं या एक दूसरे के व्यवसाय में भागीदार हैं तो रुपये पैसे को लेकर यह नहीं सोचना है कि मैं इतना अधिक कमाता हूं इसलिये मुझे विशेष अधिकार प्राप्त है। फिजूलखर्ची के मुद्दे पर झगड़ा करने के बजाय गंभीरता से यह समझा देना और समझ लेना चाहिये कि हम अपनी आर्थिक परिधि से बाहर निकल रहे हैं। अन्त में, हम यह कह सकते हैं कि दाम्पत्य जीवन उत्तरदायित्वों से भरा हुआ जीवन-संग्राम है। पति-पत्नी दोनों को मिलकर अपनी संतान के प्रति जो जिम्मेदारियां हैं वह तो निभानी ही है । इसके साथ-साथ परिवारजनों के प्रति, विशेषकर मातापिता एवं भाई-बहनों के प्रति जो अनगिनत कर्तव्य हैं उनको भी निभाना है। कर्तव्य-पालन और त्याग की भावना से ही मनुष्य को परम सुख प्राप्त हो सकता है। __-प्रोफेसर एवं अध्यक्ष जीवन-विज्ञान, प्रेक्षाध्यान एवं योग जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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