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________________ अर्थात् जीव गुणों से सम्बद्ध, फल का कर्ता एवं भोक्ता, विभिन्न रूपों वाला, त्रिगुणमय, तीन मार्गों से गमन करने वाला, प्राणों का अधिष्ठाता और अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में गमन करने वाला है। आचारांग का भी यही दृष्टिकोण कर्मग्रन्थि के भेदन होते ही वह (जीवात्मा) शुद्धात्मा अथवा परमात्मा बन जाता है । उसके शुद्ध स्वरूप के निरूपण में किंचित् भेदाभेद है । १०.१. समानताएं १०.१.१. दोनों ने आत्मनिरूपण प्रसंग में व्यतिरेक पद्धति का सहारा लिया है । २. वह आत्मा शब्दादि से अग्राह्य है-'सव्वेसरा णियति, तक्का जत्थ ण विज्जई, मई तत्थ न गाहिया' अर्थात् सब स्वर लौट आते हैं (शब्द के द्वारा आत्मा का प्रतिपादन नहीं किया जा सकता है) वहां कोई तर्क नहीं है (आत्मा तर्कगम्य नहीं है), तथा वह मति के द्वारा ग्राह्य नहीं है । उपनिषदों में अनेक स्थल पर यही ध्वनि सुनाई पड़ती है --- यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह-तैत्तिरीय०, २२ नैव वाचा न मनसा प्राप्तुं शक्यो न चक्षुषा-कठो०, २.३.१२ नैषा तर्केण मतिरापनेया-कठो० १.२.९ । न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग् गच्छति नो मन:-केन०, १.३ न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा-मुण्डक०, ३.३.१ नायमात्मा प्रवचनेन लभ्य : न मेधया न बहुना श्रुतेन -- मुण्डक०, ३.२.३ कठोप०, १.२.२३ ३. वह शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंधादि से रहित हैआचारांग सूत्र-ण किण्हे, ण णीले, ण लोहिए, ण हालिद्दे, ण सुक्किल्ले आ०, ५.१२८ ण सुरभिगंधे ण दुरभिगंधे --- आ०, ३.१२९ अरूवी सत्ता-आ०, ५.१३८ अ पयस्स पयं णत्थि, ५.१३९ मुण्डकोपनिषद् में इसी स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है यत्तद्रेश्यमग्राह्यमचक्षुश्रोत्रमपाणिपादम् -- मु०, १.१.६ ४. वह स्त्री-पुरुष लिंगभेद से रहित है ण इत्थी ण पुरिसे ण अण्णहा--आचा०, ५.१५५ नैष स्त्री न पुमानेष न चैवायं नपुंसक:--- श्वेताश्वर०, ५.१० ५. वह प्रज्ञान अथवा ज्ञानस्वरूप है परिणे सण्णे (आ० ५.१३६) अर्थात् वह परिज्ञ है, संज्ञ है, सर्वत: चैतन्य है । बृहदारण्यक में कहा गया है-प्रज्ञान धन एव (५.३.१५) अत्रायं पुरुषः स्वयं ज्योतिः (बृह०)। ब्रह्मसूत्र २.३.१८ -ज्ञोऽत एव अर्थात् वह ज्ञाता है । जन्म-मृत्यु से रहित होने के कारण वह ज्ञाता है। १४६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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