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________________ ११. परिकर अलकार . जहां साभिप्राय विशेष्यों का नियोजन किया जाय; वहां परिकर अलंकार होता है ।" सम्बोधि में कई स्थानों पर साभिप्राय विशेषणों की योजना कर चमत्कृत किया गया है कृताकम्पमनोभावो, भावनानां विशोधकः । सम्यक्त्वशुद्धमूलोऽस्ति, धति कन्दोऽपरिग्रह ॥२५ अपरिग्रह से मन की चपलता दूर हो जाती है, भावनाओं का शोधन होता है । उसका शुद्ध मूल है सम्यक्त्व और धैर्य उसका कन्द है। उपर्युक्त उदाहरण में सम्यक्त्व विशेष्य है। इस विशेष्य का प्रयोग संबोधिकार ने विशेष अभिप्राय से किया है । अतः यहां परिकर अलंकार है। १२. स्वभावोक्ति शिशु, युवक अथवा पशु-पक्षियों की स्वाभाविक चेष्टाओं के चमत्कारपूर्ण वर्णन के संदर्भ में स्वाभावोक्ति अलंकार होता है ।२४ संबोधि में कहीं-कहीं इसका चमत्कारपूर्ण वर्णन मिलता है। आत्मा ज्ञानमयोऽनन्तं, ज्ञानं नाम तदुच्यते । अनन्तान् गुणपर्यायान्, तत्प्रकाशितमर्हति ॥५ आत्मा ज्ञानमय है । उसका ज्ञान अनन्त है। वह अनन्त गुण और पर्यायों को जानने में समर्थ है। यहां आत्मा की स्वाभाविक स्थिति का चित्रण होने के कारण स्वभावोक्ति अलंकार है। १३. पर्याय अलंकार जब एक वस्तु की क्रमशः अनेक स्थानों में अथवा अनेक वस्तुओं की क्रमश: एक स्थान में स्वतः अवस्थिति हो या अन्य द्वारा की जाय तो वहां पर्याय अलंकार होता है।" संबोधिकार ने इसका बहुत मार्मिक चित्रण किया है शुद्धं शिवं सुकथितं, सुदृष्टं सुप्रतिष्ठितम् । सारभूतञ्चलोकेऽस्मिन्, सत्यमस्ति सनातनम् ।।२७ इस लोक में सत्य ही सारभूत है, वह शुद्ध है, तीथंकरों के द्वारा सम्यक् प्रकार से कहा हुआ है, सम्यक् प्रकार से देखा हुआ है, सम्यक् प्रकार से प्रतिष्ठित है और शाश्वत है। यह एक ही वस्तु सत्य की अनेक रूपों में अवस्थिति का निदर्शन किया गया है, इसलिए यहां पर्याय अलंकार है । १४. भाविक अलंकार इस अलंकार में भूत एवं भविष्य का वर्तमान की भांति वर्णन कर उनकी सत्ता की रक्षा की जाती है, इसलिए इसे भाविक कहते हैं ।२८ संबोधि में इसका सजीव चित्रण किया गया है अतीतं वर्तमानं च, भविष्यच्चिरकालिकम् । सर्वथा मन्यते त्रायी, दर्शनावरणान्तकः ॥२९ २१८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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