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वह दर्शनावरणीय का अन्त करने वाला यति चिरकालीन अतीत, वर्तमान और भविष्य को सर्वथा जान लेता है और वह सभी जीवों का रक्षक होता है ।
यति भूत और भविष्य को वर्तमान की तरह साक्षात् जान लेता है और जीवों का ( सत्ता का ) रक्षक होने से यहां भाविक अलंकार है ।
१५. कारण माला अलंकार
मम्मट के अनुसार जब उत्तर-उत्तर अर्थ के प्रति पूर्व-पूर्व अर्थकारण या हेतु-रूप में वर्णित होतो कारणमाला अलंकार कहलाता है ।" 'संबोधि' में इसके सटीक उदाहरण मिलते हैं ।
इसमें उत्तर हेतु सत्य सेवी श्रद्धावान् लक्षण है आस्तिक्य आस्तिक्य का कारण है शम, शम का कारण है संवेग, संवेग का हेतु है निर्वेद और निर्वेद रूपी हेतु से उत्पन्न होती है अनुकम्पा । अतः यहां कारणमाला अलंकार घटित होता है ।
१६. समुच्चय अलंकार
आस्तिक्यं जायते पूर्वमास्तिक्याज्जायते शमः । शमाद् भवति संवेगो, निर्वेदो जायते ततः ॥ निर्वेदादनुकम्पास्यादेतानि मिलितानि च । श्रद्धावतो लक्षणानि जायन्ते सत्यसेविनः ॥"
किसी कार्य की सिद्धि के लिए एक साधक के होते हुए भी साधकांतर का कथन करना समुच्चय अलंकार है
जैसे
वह व्यक्ति अर्जित दुःखों को प्रकम्पित कर डालता है जो मानव-जन्म को प्राप्त होकर धर्म का श्रवण करता है, इस एक साधक के होते हुए भी श्रद्धा रखना, संयम में शक्ति का प्रयोग करना साधकांतरों का विवेचन होने से यहां समुच्चय अलंकार है ।
१७. समाधि अलंकार
लब्ध्वा मनुष्यतां धर्म, शृणुयाच्छ्रद्दधीतयः । वीर्यं स च समासाद्य, घुनीयाद् दुःखमर्जितम् ॥"
आकस्मिक कारणान्तर के योग से कार्य का सुगमता पूर्वक सिद्ध हो जाने के
इसका संबोधि में बहुलता से
१४
वर्णन को समाधि या समाहित अलंकार कहते हैं ।" प्रयोग किया गया है । उदाहरण स्वरूप -
१८.
मायाञ्च निकृतिं कृत्वा, कृत्वा चासत्यभाषणम् । कूटं तोलं च मानञ्च जीवस्तिर्यग्गति व्रजेत् ॥ "
यहां कपट, प्रवंचना, असत्यभाषण और कूट- तोल-माप आदि कारणांतरों का विवेचन तिर्यञ्च गति में उत्पन्न होने का सौकर्यं कारण होने से समाधि अलंकार
है ।
संदेह अलंकार
सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान के संशय को संदेह अलंकार कहते हैं । इस
खण्ड २१, अंक २
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