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________________ में नाटाल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की । १९०६ में प्रथम सामूहिक निष्क्रिय प्रतिरोध की शुरूआत हुई। एक विशाल जनसमूह ने जोहंसवर्ग थियेटर में सत्याग्रह की शपथ लेते हुए कानून के साथ अवज्ञा व अहिंसक प्रतिरोध करने का निर्णय लिया, प्रतिक्रिया स्वरूप भारी पैमाने पर गिरफ्तारयां हुई । सत्याग्रह के क्रम में १९०८ में अवज्ञा के रूप में परिचय पत्रों को जलाया गया। इसके अतिरिक्त नाटाल कूच आदि सत्याग्रह से गांधी ने प्रतीक के रूप में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का विरोध शुरू कर इतिहास को नई दिशा दी। गांधी अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के बाद तथा कई प्रयोग के उपरांत भारत वापस लौट आये और दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आन्दोलन को अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने आगे बढ़ाया। दक्षिण अफ्रीका में स्वतंत्रता हेतु वहां के प्रायः सभी जाति के लोगों ने भाग लिया, जिसमें आश्चर्यजनक रूप से गोरों की संख्या काफी रही । स्वतंत्रता के संघर्ष के केन्द्र में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस का नाम आता है । १९१२ में पिक्सले सेम के नेतृत्व में संस्थापित अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस का एक लंबा इतिहास है। लगभग ५० वर्षों तक अहिंसक तरीका अपनाते हुए शोषण व अन्याय का शांतिपूर्ण प्रतिकार किया, परन्तु १९६० में आंदोलन का दूसरा रूप सामने आया । अब क्रांतिकारी पूर्ण अहिंसा का रास्ता छोड़कर नियंत्रित हिंसा के कार्यक्रम को भी मान्य करने को बाध्य हो गये। यह और भी स्पष्ट हो गया था जैसा कि रंगभेद विरोध के मान्य नेता अलबर्ट लुजलू ने कहा था कि "अफ्रीकन तब तक दास ही रहेंगे जब तक कि इस क्रूर सरकार से केवल प्रार्थना व भिक्षा की जायेगी।" हिंसा को मान्यता देने के बावजूद ए. एन. सी. फ्रीडम चार्टर में आदर्शात्मक भविष्य के निर्माण की कल्पना की गई थी। जिसको २५ जून १९५५ को अंगीकार किया गया था। इसके मुख्य अंश इस प्रकार हैं : "हम दक्षिण अफ्रीका के नागरिक अपने राष्ट्र व विश्व के लिए घोषणा करते हैं कि दक्षिण अफ्रीका उन सबका है जो यहां रहते हैं।" १. यहां राज्यों को समान अधिकार मिलेंगे। २. न्यायालयों में तथा शिक्षण संस्थाओं में बिना किसी भेद के सबको समान ___ अधिकार मिलेगा। ३. हर व्यक्ति को अपनी संस्कृति व रिवाज को मानने व अपनी भाषा प्रयोग करने का अधिकार होगा। ४. हर राष्ट्रीय समूह को उसकी जाति के व राष्ट्र के सम्मान के लिए न्याय की सुरक्षा मिलेगी। . रंगभेद, जातिभेद, नीति का प्रचार प्रयोग आदि दण्डनीय अपराध माने जायेंगे तथा इस प्रकार के हर कानून को अमान्य किया जायेगा। ६. हर पुरुष व स्त्री को मत का प्रयोग व चुनाव लड़ने का अधिकार दिया जाएगा। ७. हर व्यक्ति को सत्ता में भागीदारी के योग्य माना जायेगा। खण्ड २१, अंक १ ६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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