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________________ इसकी शुरूआत १८८३ में हुई जब ऐडाल्फ लुडीरट्ज एक जर्मन व्यापारी के प्रतिनिधि का जहाज हेमबर्ग से प्रस्थान कर अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिम तट पर ठहरा । स्थानीय आदिवासी कबीलों के सरदार वस्तुओं के आकर्षण में वहां तट समेत भूमि बेचने पर राजी हो गये । १८८५ तंजानिया, जर्मन उपनिवेश की स्थापना के पश्चात् नामीबिया, केमरून तथा टोकोलैंड पर अपने अधिकार की घोषणा की जिसका विस्तार १८९० में जंजीबार १९०५ में सोमालिया, १९११ में लीबिया तथा १९१२ मोरोक्को में उपनिवेश स्थापित करने से हुआ । " उपनिवेशवाद के क्रम में ही १८८५ में बेल्जियम के राजा लियापाल्ड ने कांगो (जिसका वर्तमान में नाम जेरे है), रंवाडा तथा बरूंड़ी पर अपने व्यक्तिगत स्वामित्व की घोषणा की ।' उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि अफ्रीका प्रारंभ से उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का शिकार होता रहा । उपनिवेशवाद की श्रृंखला का अन्त १९३५ में मुसोलिनी द्वारा इथोपिया पर कब्जा करने से हुआ । कोई भी देश सदा सर्वदा एक स्थिति में बना नहीं रहता क्योंकि राष्ट्र की चेतना सदैव समान नहीं होती । यह स्वाभाविक था कि अफ्रीका वासियों में शोषण के विरुद्ध स्वतंत्रता की चेतना जगी और इस उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष का दौर आरंभ हुआ, जिसमें महात्मा गांधी की प्रतीकात्मक रूप से ही सही, एक अहम् भूमिका रही । गांधी दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने १८९३ से १९९४ तक लगभग २० साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम व भविष्य में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को नेतृत्व देने को दृष्टि में रखते हुए वह उनका अभ्यास काल माना जा सकता है । १८६० में गन्ना खेतों में कार्य करने के लिए भारतीयों को नाटाल लाया गया था । १८९१ तक दक्षिण अफ्रीका में लगभग एक लाख भारतीय थे जो कि ज्यादातर नाटाल और ट्रांसवाल में बसे थे । गांधी नाटाल में एक युवा वकील की भूमिका में गये थे । वहां भारतीयों के साथ भेदात्मक व्यवहार को देखते हुए उन्होंने वहां सत्याग्रह का प्रयोग किया । १८९५ में नाल की सरकार ने उन भारतीय मजदूरों पर कर लगा दिया जो अपने कार्य की अवधि समाप्त कर चुके थे । इसका उद्देश्य भारतीयों को वापस अपने देश भेजना था । इसके अतिरिक्त ट्रांसवाल में परिचय पत्र की आवश्यकता जो कि अब तक केवल अफ्रीकियों पर ही लागू होती थी भारतीयों समेत सब एशियाई व्यक्तियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया । तद् उपरांत इसके क्रम में कोप सुप्रिम कोर्ट का आदेश आया जिसमें केवल ईसाई पद्धति से हुए विवाह को मान्य किया गया । इस प्रकार अफ्रीका सरकार की भेदमूलक नीति से अफ्रीकावासी संत्रस्त थे । गांधी स्वयं इस भेद-भाव का शिकार हो चुके थे, जिसकी कटु अनुभूति ने उन्हें इस भेदमूलक व्यवस्था के उन्मूलन के लिए प्रेरित किया और इसी क्रम में उन्होंने १८९५ ६६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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