SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। आधुनिक मनोविज्ञान का गेस्टाल्ट सम्प्रदाय भी स्वीकार करता है कि ज्ञानात्मक प्रक्रिया में अनेक तत्त्वों का हाथ है जिसे वे (Ground, Figure) आदि कहते हैं। अतः मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ज्ञान को (Ground) कहा जा सकता है जबकि संज्ञान को (Figure)। जैन-दर्शन में संज्ञान का स्वरूप जन साहित्य के दार्शनिक ग्रन्थों में उमास्वाती का तत्वार्याधिगमसूत्र, सिद्धसेन दिवाकर का न्यायावतार, समन्तभद्र की आप्तमीमांसा, हेमचन्द्रसूरी की प्रमाणमीमांसा, देवासूरी का प्रमाणतत्वालोकालंकार, मानिक्य नन्दी का परीक्षामुखपत्र, प्रभाचन्द्र का प्रमेयकमलमार्तण्ड, आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार, पंचास्तिकाय एवं प्रवचनसार, यशोविजय का न्यायप्रदीप आदि महत्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थ हैं जिसमें ज्ञान, संज्ञान, प्रमा, प्रमाण आदि विषयों को उचित स्थान मिला है। जैन-दर्शन संज्ञान को गुण मानता है, पर उसे वह न तो भौतिक तत्वों का आगंतुक गुण मानता है और न ही आत्मा का आगन्तुक गुण । फलतः जैन-दर्शन का संज्ञान मूलक विचार चार्वाक, न्याय-वैशेषिक तथा मीमांसा के मतों से भिन्न हो जाता है। चेतना अथवा ज्ञान जीव का अनिवार्य गुण है। किन्तु जैन दृष्टि में गुण का वही अर्थ नहीं है जो न्यायवैशेषिक दर्शन में माना गया है । न्यायवैशेषिक दर्शन में द्रव्य तथा गुण की भिन्न-भिन्न सत्ताएं हैं जो समवाय पदार्थ से सम्बन्धित हैं । जैन दार्शनिक प्रायः न तो द्रव्य और गुण का भेद स्वीकार करते हैं और न उन दोनों में समवाय सम्बन्ध ही मानते हैं । वे द्रव्य के दो प्रकार के विशेषण स्वीकार करते हैं जिसे वे गुण तथा पर्याय कहते हैं । गुण तथा पर्याय के भेद तथा उनके परस्पर सम्बन्ध को लेकर जैन दार्शनिकों में आपस में मतभेद हैं । सिद्धसेन दिवाकर, हरिभद्र, हेम चन्द्र, यशोविजय आदि इस सम्बन्ध में अभेदवाद को मान्यता देते हैं ।' उनका मत है कि गुण तथा पर्याय वास्तव में एक ही प्रकार के विशेषण हैं तथा इनमें नाम मात्र का भेद है। किन्तु आचार्य कुन्दकुन्द, उमास्वाति, पूज्यपाद, विद्यानन्द आदि गुण तथा पर्याय में भेद स्वीकार करते हैं । आचार्य कुन्दकुन्द का कथन है कि हमारे ज्ञान के विषय द्रव्य होते हैं जो गुणों से विशिष्ट तथा पुनः पर्याय से सम्बन्धित हैं । गुण सहभावी होते हैं तथा पर्याय क्रमभावी । गुण अपरिवर्तित रहते हैं जबकि पर्याय परिवर्तित होते रहते हैं। गुण द्रव्य के आन्तरिक विशेषण है जबकि पर्याय उसके बाह्य विशेषण माने जा सकते हैं। अकलंक तथा वादिदेव का मत भेदाभेद का है इनके अनुसार गुण द्रव्य में कालाभेदाप्रेक्षया स्थित होते हैं जबकि पर्याय कालविभेदाप्रेक्षया स्थित होते हैं। किन्तु दोनों ही धर्म्यपेक्षया दोनों से अभेदता भी रखते हैं। सांख्य दर्शन में संज्ञान का स्वरूप सांख्य-दर्शन के साहित्य में आचार्य कपिल का सांख्य सूत्र, ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका, वाचस्पति मिश्र की सांख्यतत्वकौमुदी, विज्ञान भिक्षु का सांख्यप्रवचनभाष्य, सांख्यसार आदि कृतियों का महत्वपूर्ण स्थान है जिनमें ज्ञान, संज्ञान, प्रमा, २८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy