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________________ सकता है और उसे तदनुरूप व्यवहार भी दे सकता है। ३१. कृपा की आकांक्षा और कृपा का अहं-व्यक्तित्व विकास की ही बड़ी बाधाएं ३२. भाग्य की आकांक्षा और भाग्य का अहं ---एक ऐसा मिट्टी का महल है जिसे मिटाने के लिए तूफान और वर्षा कभी हो सकती है।" ३३. अनुशासन एक कला है उसका शिल्पी यह जानता है कि कब कहा जाए और कब सहा जाए। सर्वत्र कहा ही जाए तो धागा टूट जाता है और सर्वत्र सहा ही जाए तो वह हाथ से छूट जाता है। इसीलिए वह मर्यादाओं की रेखाओं को जानकर चलता है ।१२ ३४. लक्ष्य तक कोई भी पहुंच सकता है, पर पहुंचता वही है, जो उसकी खोज में लग जाता है।" [ग] दार्शनिक सूक्तियां १. जो चितन अचिंतन से निकलता है, वह कभी अधूरा नहीं रहता।" २. कोई बच्चा आगे क्या होगा -यह सब गर्भ में होता है, उसका स्पष्ट बोध स्वयं को भी नहीं होता है और दूसरों को भी नहीं होता उसका पूर्वाभ्यास स्वयं को भी हो जाता है और दूसरों को भी हो जाता है । ५ ३. अज्ञान जब सक्रिय होता है तब ज्ञान की दिशा स्पष्ट नहीं होती, शायद ऐसा भी होता होगा कि ज्ञान कि दिशा स्पष्ट होने पर अज्ञान की सक्रियता कम हो जाती है। ४. अज्ञान को छोड़कर केवल ज्ञान को समझने का प्रयत्न व उसी के आधार पर निष्कर्ष निकालना----सच होने पर भी अधूरा सच होता है पूरा सच नहीं होता। ५. मनुष्य अज्ञात प्रदेश से आता है, अज्ञात प्रदेश में चला जाता है, मध्य का विराम ज्ञात होता है, उसमें कितने ही अज्ञात सम्बन्ध जुड़ जाते हैं। ६. ज्ञान के निर्माण में अज्ञान का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण योग है।" ७. अज्ञान जो है वह ज्ञान से अधिक क्षमताशील है। ८. कर्तृत्व से जुड़ा हुआ व्यक्तित्व और व्यक्तित्व से जुड़ा हुआ कर्तृत्व ही मूल्यवान् होता है।" ९. शक्ति की अभिव्यक्ति है कर्तृत्व और कर्तृत्व की निष्पति है व्यक्तित्व ।" १०. अपने उत्कर्ष से अपना विकास- इसका अर्थ है-कर्तृत्व । ११. वह कर्तृत्व जिसमें अपना उत्कर्ष नहीं है-समाज का उत्कर्ष नहीं कर सकता। १२. कर्तृत्व का आदि चरण है--- संकल्प, मध्य चरण है साधना और अंतिम चरण है सिद्धि । १३. ज्ञान-दर्शन और चरित्र को सुदृढ़ता का आधार बनता है-आगम ।" १४. स्वार्थ और लोभ क्रूरता को जन्म देता है।" खण्ड २०, बंक ४ ३५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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