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१५. वीतराग दशा सम दशा है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता । १६. अनस्तित्व का भी अस्तित्व और अभाव का भी भाव पक्ष होता है।" १७. जब शास्त्रीय वाक्यों की दुहाई बढ़ती है पर आत्मानुभूति घटती है तब
शास्त्र तेजस्वी और धर्म निस्तेज हो जाता है। जब आत्मानुभूति बढ़ती है और शास्त्रीय वाक्यों की दुहाई घटती है तब धर्म तेजस्वी और शास्त्र निस्तेज हो जाता हैं । १८. वह व्यक्ति धन्य है, बहुत सौभाग्यशाली है जिसकी चिंता करने वाले गुरु
मिल जाए। १९. शक्ति होना एक बात है और शक्ति को जानने वाला देवता मिलना दूसरी
बात है। २०. जिसमें विद्या का समावेश हो और साधना का समागम हो- उसे महाप्रज्ञ
कहते हैं। २१. जो शाश्वत में विश्वास करता है, उसका विश्वास आधुनिकता में होगा ही
पर केवल आधुनिकता में नहीं।" २२. व्यक्ति के भाग्योदय की सूचना स्वप्न और संकेत भी देते हैं ।
इसी प्रकार अन्य प्रकार की सूक्तियां भी इस ग्रन्थ रत्न में समाहित हैं। जिन्हें संग्रह किया जा सकता है। ये सूक्तियां अपनी अलग पहचान रखती हैं । सत्य का अनुसंधान करने में सहायक हैं । सौन्दर्य अभिव्यंजना और व्यवहार की समुचित व्याख्या करती हैं । 'महानता का स्रोत व्यक्ति के कर्तृत्व से फूटता है' और 'विश्वास, विश्वास से बढ़ता है'-जैसी सुक्तियां मानवता के लिए आदर्श बन सकती हैं।
वस्तुतः सूक्ति प्रबोध, विवेक, लोकहित और सम्यकत्व उपदेश के लिए होती
प्रबोधाय विवेकाय हिताय प्रशमाय च । सम्यकत्वोपदेशाय सतां सूक्तिः प्रवर्तते ॥
और 'महाप्रज्ञ : अतीत और वर्तमान' में उपलब्ध सूक्तियां इसी कोटि की हैं जिनका अध्ययन निश्चय ही लोक हितावह हो सकता है ।
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तुलसी प्रज्ञा
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