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१४. कोरा ज्ञान होता है तो शून्य पूरा भरता नहीं-उसमें अहंकार को अपना
आसन बिछाने का अवसर मिल जाता है । ज्ञान के बाद ध्यान की प्रेरणा से
यह शून्य भर जाता है। १५. जो दर्शन या धर्म वर्तमान समस्या का समाधान नहीं देता, वह उपयोगी नहीं हो सकता और जो उपयोगी नहीं हो सकता वह चिरंजीवी नहीं हो
सकता। १६. अपनी समस्या केवल अपनी ही नहीं होती, वे दूसरों की भी होती हैं ।
दूसरों की समस्या केवल दूसरों की ही नहीं होती--वे अपनी भी होती ,
१७. अपने उत्कर्ष के लिए जो किया जाता है ----वह व्यक्तित्व भी है, कर्तृत्व भी
१८. आगम का शुद्ध स्वच्छ जल, जिसको पीने से बढ़ता है ज्ञान-अंकुर,
सिंचित होती है आस्था की बेल, फलने-फूलने से लगता है चरित्र का
वृक्ष।
१९. जो विचार वर्तमान में आलोक दे सकते हैं, उलझनों को सुलझा सकते हैं,
उनकी उपयोगिता है। २०. जो व्यक्ति निरन्तर व्यस्त है--- वह नासमझी का जीवन जी रहा है, खाली
होना-जीने की एक कला है। २१. जो आदमी अपने आपको व्यस्त रखता है दिमाग को कभी खाली नहीं
करता, वह शायद मौत को ज्यादा प्यारा है, मौत उसे जल्दी अपने घर
बुलाना चाहती है।५० २२. स्वदर्शन की साधना का अर्थ है ---- अपने भाग्य की डोर को अपने हाथ में
लेना, दुःख और समस्या की मूल जड़ पर प्रहार करना। २३. कल्पना और सच के बीच जो फासला है, अतीत और वर्तमान की जो दूरी
है उसे पार करने में व्यक्ति का पुरुषार्थ मुख्य भूमिका निभाता है।५२ २४. पत्र व्यक्ति के अंतरंग व्यक्तित्व का आईना होता है । २५. पत्र में जो सचाईयां और संवेदनाएं अभिव्यक्त होती हैं वे साहित्य में नहीं
हो सकतीं ।५४ २६. जो अतीत को छोड़ देता है, वह सत्य को अवश्य उपलब्ध हो जाता है । ५ २७. कोरा ज्ञान व्यक्ति को भटकाता है तो कोरी साधना व्यक्ति को भटकाती
२८. जब किसी के साथ सम्बन्ध नहीं होता है तो सहज ही सबके साथ हो जाता
२९. धर्म संघ में शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है--अध्यात्म चेतना का
जागरण । ३०. दार्शनिक शास्ता अपनी जनता को जीवन दर्शन की गहराई से परिचित करा
तुलसी प्रज्ञा
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