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जो बारहखड़ी की ग्यारहवीं मात्रा है । जैन समाज के आचार्यों ने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख शास्त्रों में किया है ।
तेरापंथ शब्द के चारों अक्षर शब्द-शक्ति और स्वर-शक्ति प्रधान हैं। इन चारों अक्षरों में तीन गुरु और एक लघु है । गुरु और लघु का क्रम निम्न प्रकार है--SSS)। इनकी कुल सात मात्राएं हैं । भारतीय संस्कृति में सात की संख्या को शुभ माना गया है । इस संख्या से अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है, जैसे सप्त रश्मियां, सप्त ऋषि, सप्त महारास, सप्त तांडव, सप्त स्वर, सप्त ताल (कर्नाटक संगीत) सूर्य के सप्त । अश्व, सात वार, सात नदियां, सप्त द्वीप, इन्द्रधनुष के सात रंग आदि ।
तेरह साधुओं और तेरह श्रावकों को एक साथ साधना करते देख कर तेरह पंथ के नामकरण दिए जाने की बात भी इस समाज में प्रचलित है पर १३ के अंक को १- ३= ४ की संख्या तेरापंथ शब्द के चार अक्षरों की पुष्टि करती है । अत: यह शब्द वैज्ञानिक आधार पर अपने आपमें शुभ, मंगलकारी और प्रभावशाली है।
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तुलसी प्रज्ञा
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