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________________ उत्तराधिकारी मनोनीत किए जाने पर सन् १६२८ ई० में वह अपने साथी राठौड़ों के साथ मुगल बादशाह शाहजहां के पास चले गए। शाहजहां ने उनको दो हजारी जात और १३०० सवारों का मनसब दिया। मुगल बादशाह के पक्ष में उन्होंने विभिन्न युद्धों में बहादुरी दिखलाई जिसके फलस्वरूप उनको राव की पदवी और नागौर परगने की जागीर सन् १६३९ ई० में मिली। ईरानियों के विरुद्ध मुगल शहजादों, मुराद और दाराशिकोह के साथ-साथ उन्होंने काबुल और कांधार की लड़ाईयों (सन् १६४११६४२ ई०) में अत्यधिक बहादुरी दिखलाई। इस समय उनका मनसब चार हजार जात और तीन हजार सिपाहियों का था । मुगल दरबार में अमरसिंह राठौड़ अत्यधिक प्रभावी थे । २५ जुलाई सन् १६४४ ई० को दरबारी षडयन्त्र के कारण मुगल दरबार आगरा में उन्होंने सलाबत खां (मीर बख्शी) को मारा था और वीरगति को प्राप्त हुए। राव अमरसिंह के पास वाली छतरियां उनकी रानियां और परिवार के सदस्यों की बतलायी जाती हैं। नागौर स्थित एक परकोटे के मध्य में पीले रंग के बलुआ पत्थर से निर्मित १६ खम्भों वाली बड़ी छतरी राव अमरसिंह राठौड़ की है जो १७ वीं शताब्दी के राजस्थानी स्थापत्य का एक सुन्दर नमूना है। ___ नागौर के अन्य दर्शनीय स्थलों में यहां का किला, महल, अकबरी मस्जिद, तारकीन दरगाह, बन्शीवाला मंदिर, कांच का मंदिर आदि हैं। नागौर के निकट गोठ-मांगलोद में दधिमति माता का प्राचीन मन्दिर हैं। पुरातात्विक एवं कलात्मक महत्व के भिति चित्र नागौर के किले में स्थित महलों में देखे जा सकते हैं । ये चित्र राजस्थानी चित्रकला की नागौर शैली में निर्मित हैं। इन चित्रों के महत्त्व को देखते हुए उनका संरक्षण राष्ट्रीय स्तर पर देश के प्रमुख पुरा रसायनवेत्ताओं द्वारा विगत वर्षों में किया गया। नागौर क्षेत्र के केविन्द स्थित शिव मन्दिर १०वीं शती और भवाल स्थित माताजी का मन्दिर ११ वीं शती के स्थापत्य कला के महत्त्वपूर्ण नमूने हैं। न तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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