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________________ नागौर_इतिहास के झरोखे से फणिलाल चक्रवर्ती राजस्थान के इतिहास में नागौर की एक प्रमुख भूमिका रही है । पुरातात्विक अनुसंधानों के प्रकाश में यह सिद्ध हो गया है कि यह क्षेत्र आदि मानव की शरणस्थली था। जिले के ग्राम जायल तथा निकटवर्ती स्थानों में किए गए उत्खनन कार्यों के परिणामस्वरूप यहां दो लाख वर्ष प्राचीन पाषाण-उपकरण प्राप्त हुए हैं। उत्खनन द्वार। पुरातत्ववेत्ताओं ने यहां के प्राचीन पर्यावरण का अध्ययन भी किया है। प्राचीन स्थल कुराड़ा (तहसील परबतसर) से चार हजार वर्ष पूर्व की ताम्र-सामग्री के भण्डार मिले हैं। यह उपलब्धि भारतीय पुरातत्व की एक अमूल्य निधि है तथा इनमें से कुछ बर्तन सभ्यताओं के उषाकाल में भारत तथा ईरान के सम्बन्धों की ओर इंगित करते प्राचीन साहित्य और शिलालेखों में इस क्षेत्र का उल्लेख सपादलक्ष और "अहिछत्रपर" अथवा "नागहृद" के रूप में भी हुआ है। कर्नल गेम्स टाड ने इसका नाम "नागदुर्ग' बतलाया है तथा जैन धर्म के हस्तलिखित ग्रन्थों में यह "नाग उर" के रूप में सम्बोधित किया गया है। प्रतीत होता है कि कालांतर में इन्हीं शब्दों से वर्तमान नागौर बना जो ७०० वर्ष प्राचीन फारसी तवारीखों में मिलता है। __नागौर राजस्थान का एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। दिल्ली-सिन्ध के राजमार्ग पर स्थित होने के कारण यह मध्य युग में एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र भी रहा है । इसी कारण यह समय-समय पर चौहान, दिल्ली के सुल्तान, मुगलों व राठौड़ शासकों के अधिकार क्षेत्र का प्रमुख केन्द्र रहा ! चौहान नरेश पृथ्वीराज ने सन् १९५४ ई० में इस किले का निर्माण करवाया । परवर्ती शासकों ने निर्माण की इस परम्परा को जीवित रखा तथा अपने योगदान से किले की शोभा में वृद्धि की। अकबर का नवरत्न तथा “आईने अकबरी" का लेखक अबुलफजल नागौर का ही निवासी था। मध्यकालीन इतिहास को अनेक जानी-मानी विभूतियां नागौर से सम्बन्धित रही हैं । अपरंच, नागौर को अत्यधिक ख्याति, अनुपम योद्धा अमरसिंह राठौड़ की जागीर होने के कारण मिली। राव अमरसिंह राठौड़ का जन्म वि० सं० १६७० की पोष सुदी ११ तदनुसार १२ दिसम्बर, १६१३ ई० को हुआ था। मारवाड़ के महाराजा गजसिंह के वे ज्येष्ठ पुत्र थे । अत्यधिक बहादुर तथा निडर होने के साथ-साथ उनका स्वभाव स्वाभिमानी और स्वतन्त्रता प्रेमी था। पिता द्वारा छोटे भाई जसवन्तसिंह को मारवाड़ राज्य के खण्ड २०, अंक ४ ३४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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