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________________ विज्ञाश्चापि व्यथितमनसस्तकलब्धावसादात्तणाऽमा न खलु विदितस्तेऽनवस्थानहेतुः ॥३। श्रद्धा का चित्रण प्रस्तुत छन्द में सुन्दर रूप से किया गया है । दाता और ग्रहीता के बिम्ब का अनाबिल निरूपण इसी छन्द में किया गया है । उदाहरण पाणी दात्याः प्रमद-विभव-प्रेरणात्कम्पमानौ, स्निग्धो क्वापि व्यथितपृषता माषसूपं वहन्तो। आदातुस्तौ दृढतमबलात् सुस्थिरी सानुकम्पो, सद्योऽकाष्टी हृदयसजलो सूर्पमाषान् वहन्तौ ॥४ इस प्रकार महाकवि ने मन्दाक्रांता छन्द में सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है। अनुष्टुप __निर्मलप्रज्ञा के धनी आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने अनुष्टुप छन्द में साधक की उत्कृष्टता का निरूपण करते हुए कहा है निवृत्तिः पूर्णतामेति, शैलेशीञ्च दशांश्रितः । अप्रकम्पस्तदा योगी, मुक्तो भवति पुद्गलः ।।५ अर्थात् निवृत्ति से ही योगी पूर्णता को प्राप्त होता है । बसन्ततिलका गुरु की महिमा का उत्कीर्तन बसन्ततिलका छन्द में किया है___ त्वां तोलयत्यऽयमऽहो तुलसी मुनीशः, स्वीकृत्य काञ्चन तुलां तुलनतिरेकम् । यत्काञ्चनाचलमथो अधरीकरोति, धैर्य तवैकमपि कास्तु तुलान्यदीया ॥" गुरुदेव श्री तुलसी का धैर्य अचल है जिसकी तुलना अन्य किसी के साथ नहीं हो सकती। उपजाति उपजाति छन्द में सरस्वती अभिवन्दना करते हुए कहा हैश्री केवलज्ञानविभाकरेण, विभूषितज्ञातसुतस्य शस्या । सरस्वती कल्पलतेव काम्या, स्वारोहतान्मानसहंसपोतम् ॥ उपेन्द्रवज्रा उपेन्द्रवज्रा छन्द में यश का बिम्ब प्रस्तुत किया गया है-- ३२० तुलसी प्रज्ञा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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