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प्रतिपादन करता है ।
___ दूसरों के कथनों का विरोध नहीं करते हुए अपने कथनों में 'भी' का प्रयोग करते हुए अपनी बात कह लेने का एक सुन्दर ढंग है स्याद्ववाद । स्याद्ववाद बताता है कि अपनी बात को इस ढंग से कहो कि वह विवाद को जन्म न दे, अपितु विवादों में समन्वय कर दे । समन्वयात्मक दृष्टि से अविरोधपूर्वक अपनी बात कहना ही स्याद्ववाद
वर्तमान युग में अनेकांत दर्शन की प्रासंगिकता
अनेकांत दर्शन विचारों की शुद्धि करता है । वह मानव के मस्तिष्क से दूषित दृढमूर्ण विचारों को दूर कर शुद्ध एवं सत्य विचार के लिए प्रत्येक मनुष्य का आह्वान करता है । वह कहता है कि वस्तु विराट है, अनन्त-धर्मात्मक है । अपेक्षा भेद से वस्तु में अनेक विरोधी धर्म रहते हैं। उन अनेक धर्मों से से प्रत्येक धर्म परस्पर सापेक्ष हैं। वे सब एक ही वस्तु में बिना किसी वैरभाव के रहते हैं। विरोधी होते हुए भी वे विरोध का अवसर नहीं आने देते । २२
___यदि संसार के राजनीतिज्ञ भी अनेकांत के स्वरूप को ठीक तरह से समझ लें तो बहुत कुछ संभव है और संसार में युद्धों का नग्न नृत्य देखने को न मिले। क्योंकि अनेकांत से विरोधी धर्म समन्वय की तरह मानव समता का भी बोध हो सकता है
और मानव समता का ज्ञान होने से आपसी विवादों का अन्त होना संभव है। इसलिए वस्तु स्थिति का ठीक-ठीक प्रतिपादन करने वाले अनेकांत दर्शन की संसार को अत्यन्त आवश्यकता है। आधुनिक विज्ञान और अनेकांत
स्याद्ववाद का अर्थ है-सम्भावनाओं को स्वीकार करना । आज के वैज्ञानिकों ने स्याद्ववाद का अर्थ-सम्भावना किया है तथा अपनी खोजों के माध्यम से अनेकांत की पुष्टि की है। विज्ञान ने इस तथ्य को भली-प्रकार सिद्ध कर दिया है कि जिस पदार्थ को हम स्थित, नित्य और ठोस समझते हैं, वह पदार्थ बड़े वेग से गतिशील है, न केवल गतिशील है वरन् परिवर्तनशील भी है । आज का प्रबुद्ध वैज्ञानिक भी ऐसा दावा नहीं करता है कि उसने सष्टि का रहस्य और उसके वस्तुतत्व का पूर्ण ज्ञान प्राप्त लिया है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्सटीन ने कहा था कि 'हम तो केवल सापेक्षिक सत्यों को जान सकते हैं, पूर्ण या निरपेक्ष सत्य तो कोई पूर्ण दृष्टा ही जान सकेगा।' इस प्रकार हम देखते हैं कि वैज्ञानिक और दार्शनिक दोनों ही दृष्टियों से सामान्य मानवबुद्धि निरपेक्ष पूर्ण सत्य को जानने में असमर्थ है। अनेकांत विचार दृष्टि हमें यही बताती है कि परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले दो सापेक्षिक सत्य अपेक्षा भेद से सत्य हो सकते
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अनेकांत का अर्थ है, सह-अस्तित्व, समन्वय, सापेक्षता, सहिष्णुता आदि । जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेकांत किस तरह दृष्टिकोण परिवर्तन में सहायक होकर संघर्ष-निवारण में सहायक बन सकता है इसका उदाहरण पारिवारिक, धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्रों पर हुई चर्चा में मिलेगा।
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तुलसी प्रज्ञा
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