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________________ नीले रंग का प्रकाश फैल रहा है। अब इसी रंग का श्वास लें। चित्त को विशुद्धि केन्द्र पर केन्द्रित करें और नीले रंग का ध्यान करें। नीले रंग से भरे हुए आभामण्डल को देखें और अनुभव करें 'वासनाएं अनुशासित हो रही है....! इस वाक्य का पूर्णभाव के साथ नौ बार मनन करें। (२) दर्शन केन्द्र पर अरुण रंग का ध्यान --- ध्यान साधे दर्शन केन्द्र पर अरुण रंग का प्रकाश फैल रहा है । धीरे-धीरे पूरा आभामण्डल अरुणमय हो गया है। श्वास लेते समय अनुभव करें कि अरुण रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं। चित्त को दर्शनकेन्द्र पर केन्द्रित करें। अनुचिन्तन करें-- 'अन्तर्दृष्टि जागृत हो रही है'। इस वाक्य का नौ बार मनन करें। ... (४) ज्योति केन्द्र पर श्वेत रंग का ध्यान--अनुभव करें अपने चारों और श्वेत रंग का प्रकाश फैल रहा है । तथा आभामण्डल श्वेत रंग के परमाणुओं से भर रहा है । प्रत्येक श्वास के साथ श्वेत रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं। चित्त को ज्योति केन्द्र पर केन्द्रित कर वहां श्वेत रंग का ध्यान करें। अनुभव करें, 'आवेग और आवेश शान्त हो रहे हैं....' । इस वाक्य को नौ बार मनन करें। (५) ज्ञान केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान-अनुभव करें पीले रंग का प्रकाश शरीर के चारों ओर फैल रहा है । प्रत्येक श्वास के साथ पीले रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं । चित्त को ज्ञान केन्द्र पर केन्द्रित करें वहां पर चमकते हुए पीले रंग का ध्यान करें। अनुचिन्तन करें 'ज्ञान तंतु विकसित हो रहे हैं...' । इस प्रकार का मनन नौ बार करें। मानव शरीर में उपरोक्त पांच केन्द्रों का विवरण इस प्रकार है : (१) आनन्द केन्द्र (हृदयस्थल), २. विशुद्धि केन्द्र (कंठस्थल), ३. दर्शन केन्द्र (भृकुटियों का मध्यस्थल) ४. ज्योति केन्द्र (ललाट स्थल) ५. ज्ञान केन्द्र (सिर का शीर्ष स्थल)। वैज्ञानिक निष्कर्ष अणु-आभा वैज्ञानिक डॉ० जे० सी० ट्रस्ट ने इस विषय का बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से स्पर्श किया है । उनके अनुसार अनेक अशिक्षित लोगों के अणुओं में प्रकाश रसायन प्राप्त हुए । साधारणतः उन्हीं को लोग सच्चरित्र और धार्मिक मानते हैं जो ऊंचे घरानों में जन्म लेते हैं, गरीबों में धन बांटते हैं तथा प्रात: सायं उपासना आदि नित्य-कर्म करते हैं । परन्तु उनके अन्दर काले अणुओं का बाहुल्य था इसके विपरीत कितने ही ऐसे अपढ़, गंवार तथा बाह्य रूप में भद्दे प्रतीत होने वाले लोग भी देखने को मिले है जिनमें प्रकाशाणुओं की थरथरियों को उनकी आभा में स्पष्ट रूप से देखा गया। आश्चर्य का कारण यह था कि प्रकाशाणुओं का विकास कई वर्ण के सतत परिश्रम और इन्द्रियों के नियंत्रण के पश्चात् हो पाता है परन्तु उक्त लोगों में अनजाने ही प्रकाशाणुओं को प्राप्त कर लिया था। इस प्रकार दो श्रेणियों के लोगों का परीक्षण करने से यह बात स्पष्ट हुई कि धन सम्पत्ति प्राचुर्य के कारण व्यक्ति प्रशस्त शुभ लेश्याओं का भी धनी हो यह निश्चित नहीं। धन व्यक्ति को अति उपभोगवादी भी बना सकता है । सच्चरित्र आचरण का विषय है, धन उसका गौण साधन हो सकता तुमसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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