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ग्रहण होता है, उनसे शरीर और आभामण्डल दोनों विकृत होते हैं।
लाल रंग का ध्यान करने से शक्ति केन्द्र (मूलाधार) औद दर्शन केन्द्र (आज्ञा चक्र)---ये चैतन्य-केन्द्र जागृत होते हैं । पीले रंग का ध्यान करने से आनन्द केन्द्र (अनाहद चक्र) जागृत होता है । श्वेत रंग का ध्यान करने से विशुद्धि केन्द्र (विशुद्धिचक्र), तेजस्-केन्द्र (मणिपूर-चक्र) और ज्ञान केन्द्र (सहस्रार चक्र) जागृत होते हैं।
__श्वेत रंग ठंडा होता है। वह सूर्य से प्राप्त होने वाले जीवन तत्त्व और बल को शरीर तक पहुंचाने में कोई बाधा उपस्थित नहीं करता। लाल रंग गर्मी बढ़ाने वाला है। जिसके शरीर में रक्त की गति मंद हो उसके लिए लाभदायक है। किन्तु जिसके ज्ञान तन्तु दुर्बल हों उसके लिए यह लाभ-कारक नहीं है जो तुरन्त थक जाता है वह खिन्न रहता है उसके लिए यह रंग बहुत उपयोगी है। पीला रंग भी गरमी बढ़ाने वाला है, उससे ज्ञान तन्तु जागृत होते हैं - स्वस्थ रहते हैं । काला रंग सूर्य की रश्मियों को स्वयं आकर्षित कर लेता है । नीला रंग शीत प्रकृति का होता है इससे जीवन शक्ति प्राप्त होती है । इसमें विद्युत्-शक्ति है यह पौष्टिक और शान्ति देने वाला है । रंग और मनोभाव
रंगों के आधार पर मनुष्य के मनोभावों को पहचाना जा सकता है। जिसे आसमानी रंग पसन्द होता है वह बोलने में दक्ष-सहृदय और गम्भीर होता है। वह मनोविकार, उत्साह आदि वृत्तियों पर नियंत्रण पा लेता है। जिसे पीला रंग पसंद हो वह विचारक और आदर्शवादी होता है। लाल रंग को पसन्द करने वाला व्यक्ति साहसी, आशावान, सहिष्णु और व्यवहार कुशल होता है । काले रंग को पसन्द करने वाला दीन भावना से घिरा होता है । श्वेत रंग को पसन्द करने वाला सात्विक वृत्ति और सात्विक भावना का होता है । सूर्य का रंग पारे के समान श्वेत, चन्द्रमा का रंग चांदी के समान रूपहला, मंगल का तांबे के समान लाल, बुध का हरा, बृहस्पति का सोने के समान पीला, शुक्र का नील, शनि का आसमानी राहु का काला, केतु का आसमानी रंग इनकी किरणों में भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रभाव होसा है। उसकी किरणों के साथ मंगल आदि दूसरे ग्रहों की किरणें मिल जाती हैं तब उनका प्रभाव दूसरे प्रकार का होता है । प्रत्येक रंग के अनेक पर्याय होते हैं, प्रत्येक पर्याय के गुण
ओर प्रभाव भिन्न-भिन्न होते हैं निर्मल भावना ध्येय और उसके अनुरूप रंगों का चयन कर अनेक मानसिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है । रंगों का शरीर के केन्द्र स्थलों पर कैसे ध्यान करें इसका वर्णन निम्न है।
(१) आनन्द केन्द्र पर हरे रंग का ध्यान-अनुभव करें-- अपने चारों ओर पन्ने (धातु) की भांति चमकते हुए हरे रंग का प्रकाश फैल रहा है, हरे रंग के परमाणु फैल रहे हैं । अब इस हरे रंग का श्वास लें । पुनः अनुभव करें--प्रत्येक श्वास के साथ हरे रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे है । चित्त को आनन्द केन्द्र पर केन्द्रित करें वहां चमकते हुए हरे रंग का ध्यान करें। अनुचिंतन करें 'भावधारा निर्मल हो रही है' इस वाक्य का भावना के साथ मनन करें।
(२) विशुद्धि केन्द्र पर नीले रंग का ध्यान-ध्यान करें कि अपने चारों ओर
खंड २०, अंक ४
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