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________________ है । प्रचलित कहावत है "जैसा अन्न वैसा मन" शुद्धाहार एवं एक अन्नाहार प्रशस्त लेश्या के विकास के लिए मावश्यक है । लेश्या एक ऐसा सिद्धान्त है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना चेहरा देख सकता है । आचार विचार और व्यवहार सबका प्रतिबिम्ब लेश्या के दर्पण में देखा जा सकता है। आज लेश्या का सिद्धान्त वैज्ञानिक जगत में प्रतिष्ठित होता जा रहा है।''ज्ञान का अर्थ मात्र पुस्तकीय ज्ञान से नहीं है वह ज्ञान जो आत्मसमुत्थ है, आत्मा से उपजता है उसका सम्बन्ध लेश्या के साथ है । लेश्या शुद्ध होगी तो ज्ञान होगा, लेश्या (भावना) अशुद्ध होगी तो ज्ञान पैदा नहीं होगा। जैन आगमों में कहा गया है : _ 'जज्लेसे मरई तल्लेसे उवज्जई।' अर्थात् जिस लेश्या में मरेगा उसी लेश्या में पैदा होगा। इस प्रकार जैन दर्शन में लेश्या का सिद्धांत बहुत व्यापक रहा है । भाचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार यह कहा जा सकता है : “पार्श्व की परंपरा से जो लेश्या का सिद्धांत चला आ रहा था उसे महावीर ने अपनाया।" वस्तुतः पूर्वो का ज्ञान इतना विशाल था कि उसमें दुनिया का सारा ज्ञान समाविष्ट था। हालांकि हर दर्शन परम्पराओं में रंगों का वर्णन मिलेगा क्योंकि रंगों को छोड़कर कोई शास्त्र चल नहीं सकता । प्रत्येक शास्त्र में रंगों के आधार पर कुछ न कुछ कहा गया है किन्तु लेश्या का जितना विकास जैन परम्परा में हुआ है उतना किसी अन्य परम्परा में नहीं हुआ। संदर्भ १. धवला पुस्तक सं०-१/खण्ड संख्या-१, भाग-१, सूत्र-४/पृ० १८५/गाथा सं०८ २. पंचसंग्रह, प्राकृत अधिकार संख्या १/गाथा सं० १४२-१४३ ।। ३. धवला पुस्तक सं०-१/खण्ड सं०-१, भाग-४/पृ० १४९, गाथा सं०-६ ४. उत्तराध्ययन- ३४ वां अध्ययन, १३वीं गाथा ५. प्रवचनसार ६. पातञ्जल योग, कैवल्यपाद, व्यास भाष्य ७ ७. अपना दर्पण : अपना बिम्ब, आचार्य महाप्रज्ञ; पृष्ठ १५०-५५ के बीच ८. संबोधि, आचार्य महाप्रज्ञ, कारिका, १६-१९ ९. जैन योग , आचार्य महाप्रज्ञ, पृ० १३५ १०. वही, पृष्ठ-१३४ ११. जैन सिद्धांत दीपिका १२. संबोधि, आचार्य महाप्रज्ञ, १६२३ से १६।२८ तक १३. संबोधि, आचार्य महाप्रज्ञ, अध्याय १६, पृष्ठ-३७९ १४. राजवात्तिक अध्याय सं०-९/सूत्र सं०-७/पृष्ठ सं०-११/पंक्ति सं० ६०४ खण्ड २०, अंक ४ २९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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