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________________ संयम की साधना कर संबोधि को प्राप्त करते हैं । चाहे साधना - समर से पलायित श्रेणिकात्मज मेघकुमार हो या संसार के क्रूरता से दग्ध चन्दनबाला अथवा नश्वर-पति की व्यथा से व्यथित यौवनधन्या कुमारी रत्नवती सबके सब संयमारूढ़ होकर भव्य एवं उदात्त पृष्ठभूमि को प्राप्त करते हैं, मुमुक्षुत्व के राग में रंजित हो जाते हैं । जो कुमारी रत्नवती कल तक मर्त्यपति के विरह से विदग्ध होकर जंगल-जंगल उसको खोज रही थी वही आज संयमारूढ़ होकर परमशांत हो गई। जो कल तक उसे व्यथित करते थे वे ही आज निर्वेद एवं शम का संगीत सुना रहे हैं। बाह रे संयम का महत्त्व राजकुमारी व्योम और पथ से कहती है- हे अनासक्त व्योम ! तुम अनासक्त हो इसलिए निर्मल हो, तुम्हारे में विरूपता नहीं है । जो दूसरों के संग से आसक्त होते हैं उनका रूप विकृत हो जाता है । पथ ! तुम न राजाओं-महाराजाओं का सत्कार किया है और न इच्छानुसार चलने वाले पामर व्यक्तियों का तिरस्कार | इसलिए इच्छानुसार गमन करने वाले व्यक्तियों को उनके गन्तव्य तक पहुंचा देते हो पथ त्वया न सत्कृता नृपादयो महाजना स्तिरस्कृता न पामरा नरा यथेष्टमीत्वराः । ततो महत्व वल्लरि प्रफुलितात्म मञ्जरी, ददाति वाञ्छितं पुरं नृणां यथेष्ट चारिणाम् ॥ १ कामुक रथिक की क्रूरता एवं सेठानी की दुष्टता से पीड़ित चन्दनबाला संयमारूढ़ होती है । भगवान् की कृपा वशात् उसके हाथ पैर के बन्धन तो टूट गए लेकिन अभी तक आत्मा का बंधन नहीं टूटा । शरीर पर पहले जैसा सौन्दर्य निखर आया लेकिन आत्मा का सौन्दर्य अब भी नहीं निखरा । करुणापूर्ण आंखों से आसुओं की धार पोंछी गई किन्तु दुःख का स्रोत अब भी नहीं सूखा । चन्दनबाला इस ऊर्ध्वदर्शन द्वारा निम्नभाव आंगन में बरसे हुए रत्नों के ढेर (संसार) में आसक्त नहीं बनी, वह पूर्णतया संयमारूढ़ हो गई २८४ छिन्नो बन्धः करचरणयोर्नात्मनः किन्तु गूढ़ः, सौन्दर्यं तद् वपुसि हसितं प्राक्तनं नात्मनस्तु । धारा मृष्टा सकरुणदृशोः स्रोतसो नाऽसुखानाम्, पश्यन्त्यूर्ध्वं पलमपि न सा निम्नभावेषु मूढा || १०. जीवन का परम लक्ष्य : मोक्ष -- आचार्य महाप्रज्ञ की हर क्रिया, प्रत्येक दर्शन, यहां तक एक-एक श्वासोच्छवास भी एक ही कर्त्तव्य, एक ही प्राप्तव्य और एक ही लक्ष्य के लिए समर्पित है । व्यावहारिक जीवन की सच्चाई तो है ही काव्यात्मक उद्घोषणा भी है । महाकगि ने अपने काव्यग्रन्थों में जितने ही पात्रों का सृजन किया है, सबके सब इसी मोक्ष रूप महा विभूति की सम्प्राप्ति के लिए लालायित हैं । संबोधि' का मेघकुमार, 'अश्रुवीणा' की चन्दनबाला, 'रत्नपालचरित' के राजा रत्नपाल, मंत्री और निसर्ग यौवना कुमारी आदि सभी पात्र एक ही बिन्दू की ओर अग्रसर दिखाई पड़ते हैं— Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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