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परम उपकार उसके जीवन में होता है । यह मनोवैज्ञानिक तथ्य एवं व्यावहारिक सत्य है कि जब कभी समय मिलने पर अनाविल-मानस महाकवि उसी के प्रति अपने हृदय के बैखरी-पुष्प को समर्पित करता है, जो उसे आविल-संसार-सागर की भयंकर भंवरों से पार करने में सहायक होता है। यह आकाशी कल्पना का विजृम्मण या बौद्धिकव्यायाम मात्र नहीं बल्कि प्रत्यक्ष सत्य है ।
महाकवि-महाप्रज्ञ इसलिए महाप्रज्ञ बनें कि प्रथम सोपान में ही उन्होंने श्रद्धा का वरण किया; उसके आंचल में खेले । स्वयं श्रद्धा का मूर्तिमन्त विग्रह बन गए । यह कथन कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ के पास जो कुछ भी रत्न हैं, वे सब श्रद्धा-सागर से ही समुत्थित हैं। संसार में जो भी महापुरुष बने हैं। सबने श्रद्धा का ही आश्रय लिया है। हमारे महाकवि ने श्रद्धा का स्वाद खूब चखा और चखकर मुनि, महाप्रज्ञ और मृत्युंजयी बन गए। अश्रुवीणा के अमरगीत के संगायक, विवेच्य महाकवि का स्पष्ट उद्घोष है---"श्रद्धा का स्वाद जिसने नहीं चखा उसका जन्म ही वृथा है"
सत्सम्पर्का दधति न पदं कर्कशाः यत्र तर्का, सर्व द्वैधं व्रजति विलयं नाम विश्वास भूमौ । सर्वे स्वादाः प्रकृतिसुलभा दुर्लभाश्नानुभूताः
श्रद्धास्वादो न खलु रसितो हारितं तेनजन्म ।
यह श्रद्धा नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए नेत्र और चरणहीन व्यक्तियों के लिए चरण है। श्रद्धाविहीन मन भव्यत्व को कभी प्राप्त नहीं कर सकता है। अतुला तुला का प्रसंग भी द्रष्टव्य है
अचक्खुगाणं इणमत्थि चक्खु,
अपायगाणं चरणं इणं च । सद्धाविहीणस्स मणस्स देसे,
__णो वारिहं वोत्तमिणं ति भव्वं ।।" 'ज्ञान सभी अर्थों का प्रवर्तक नहीं होता' श्रद्धा सम्पूर्ण की साधिका है, क्योंकि श्रद्धा का प्रकाश ज्ञान के प्रकाश से महत्त्वपूर्ण है। आचार्य महाप्रज्ञ स्पष्ट शब्दों में उद्घोषणा करते हैं कि 'ज्ञान ने सदा मेरा अनुसरण नहीं किया, किन्तु श्रद्धा सदा मेरी अनुचारिणी बनी रही है । अत: मैं व्यक्त होने पर भी मानता हूं कि श्रद्धा का प्रकाश ज्ञान के प्रकाश से महत्त्वपूर्ण है
णाणे ण हं णाणुसओम्हि णिच्चं, सद्धा उ णिच्चं अणुचारिणी मे। वत्तो पि हं इणं च मन्ने,
सद्धापगासो परमोत्थि नाणा ॥ श्रद्धा का प्रकाश इसलिए भी महान् है कि जहां श्रद्धा का साम्राज्य होता है, वहां द्वैत का सर्वथा अभाव हो जाता है, आनन्द रस की सरिता प्रवाहित हो जाती है लेकिन जहां इसका अभाव हुआ, वहां दुःख का सागर लहराने लगता है। श्रद्धा की ऐसी
खण्ड २०, अंक ४
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