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________________ शरीर से श्वास लेना प्रारम्भ करें । प्राण- ग्रहण के साथ यह अनुभव करें कि पूरा शरीर, शरीर का कण-कण और शरीर का हर सेल श्वास ले रहा है। पूरे शरीर की संवेदनशीलता जाग जाएगी और पूरा शरीर प्राण-शक्ति से ओत-प्रोत हो जाएगा। यह प्राणशक्ति के विकास का प्रयोग है । १३ प्रेक्षा- ध्यान में श्वास- प्रेक्षा के तीन प्रकार बताए गए हैं २. समवृत्ति श्वास- प्रेक्षा, सहज श्वास- प्रेक्षा । दीर्घश्वासप्रेक्षा श्वास की सम्यक् प्रक्रिया को समझने के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से उसकी समुचित विधि को जानना अपेक्षित है । शरीर विज्ञान के अन्तर्गत श्वसन तंत्र के विषय में जो विस्तृत जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार हमारे फेफड़ों में हवा भरने की क्षमता लगभग ६ लीटर है । किन्तु आमतौर इस क्षमता का पूरा उपयोग बहुत कम लोग करते है । अधिकांश लोग केवल आधा लीटर वायु का विनिमय श्वासोच्छवास के दौरान कर पाते हैं। इसका कारण यह है कि सामान्यतया व्यक्ति केवल पंसली की मांसपेशियों या हंसली का ही उपयोग करते हैं, डायोफ्राम का नहीं । डायोफ्राम को गतिशील बनाने से चार या पांच लीटर तक वायु का विनिमय सम्भव हो सकता है । जब हम पंसलियों बी की मांसपेशियों तथा हंसली के साथ डायफ्राम का भी उपफेफड़ों की क्षमता का पूरा उपयोग करने में हम प्रेक्षा ध्यान में दीर्घश्वास- प्रेक्षा का विशेष महत्त्व योग करना सीख लेते हैं, तब सक्षम बन जाते हैं ।" इसलिए है । - १. दीर्घश्वास - प्रेक्षा, दीर्घश्वास- प्रेक्षा के लाभ चित्त को श्वास पर एकाग्र करने का फलितार्थं होता है - शरीर और स्वयंदोनों के पृथक्त्व का बोध । २५ प्राण ऊर्जा जागृत होती है। प्रज्ञा जागृत होती है । संकल्पशक्ति जागती है ।" श्वास प्रेक्षा मानसिक एकाग्रता का बहुत महत्त्वपूर्ण आलम्बन है । दीर्घ श्वास से रक्त को बल मिलता है, शक्ति केंद्र जागृत होते हैं, तेजस् शक्ति जागृत होती है, सुषुम्ना और नाड़ी संस्थान प्रभावित होता है । इससे भावनाओं पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है । " समवृत्ति श्वासप्रेक्षा आज असन्तुलन की स्थिति बढ़ती जा रही है, जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से मूल कारण है 'सिम्पैथेटिक' और 'पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम' में असन्तुलन का होना । जब 'सिम्पथेटिक नर्वस सिस्टम' अधिक सक्रिय हो जाता है तो व्यक्ति उद्दण्ड, उच्छृंखल और अनुशासनहीन बन जाता है, उसका प्रभाव उसके शरीर एवं मन पर भी पड़ता है; 'ब्लडप्रेसर हाई' हो जाते हैं, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, श्वास की रफ्तार तेज हो जाती है, आंखें लाल हो जाती हैं और होठ फड़कने लगते हैं । यदि 'पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम' अधिक सक्रिय होता है तो व्यक्ति निराश हो जाता है । कुण्ठा के कारण उसके व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता । समवृत्ति श्वास- प्रेक्षा के द्वारा 'सिम्पेथेटिक' और 'पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम' खण्ड २०, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only २३३ www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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