SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर के ध्यान सूत्रों को एकत्रित किया और उन्हें प्रयोगों के द्वारा अपनी अनुभूति के आधार पर वैज्ञानिक धरातल पर प्रतिष्ठित किया। वि० सं० २०३२ के जयपुर-चातुर्मास में परम्परागत जैनध्यान का अभ्यासक्रम निश्चित करने का संकल्प हुआ। जैन-साहित्य में प्रेक्षा और विपश्यना----ये दोनों शब्द प्रयुक्त हैं। प्रेक्षा-ध्यान और विपश्यना ये दोनों शब्द इस ध्यान पद्धति के लिए प्रयुक्त किए जा सकते थे, किन्तु विपश्यना ध्यान इस नाम से बौद्धों की ध्यान पद्धति प्रचलित है। इसलिए 'प्रेक्षा-ध्यान' इस नाम का चुनाव किया गया । दशवकालिक सूत्र में कहा गया है --- "संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' आत्मा के द्वारा आत्मा की संप्रेक्षा करो; स्थूल मन के द्वारा सूक्ष्म मन को देखो, स्थूल चेतना के द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखो। देखना ध्यान का मूल तत्त्व है। इसीलिए इस ध्यान-पद्धति का नाम "प्रेक्षाध्यान" रखा गया। प्रेक्षा-ध्यान का स्वरूप प्रेक्षा-ध्यान का स्वरूप है- अप्रमाद, चैतन्य का जागरण या सतत जागरूकता । जो जागृत होता है, वही अप्रमत्त होता है । जो अप्रमत्त होता है, वही एकाग्र होता है। एकाग्रचित्त वाला व्यक्ति ही ध्यान कर सकता है। प्रेक्षा-ध्यान अप्रमाद की साधना है जिसके मुख्यत: बारह अंग हैं :-- १. कायोत्सर्ग २. अन्तर्यात्रा ३. श्वास-प्रेक्षा ४. शरीर-प्रेक्षा ५. चैतन्य केंद्र-प्रेक्षा ६. लेश्या-ध्यान ७. वर्तमान क्षण-प्रेक्षा ८. विचार-प्रेक्षा और समता ९. संयम १०. भावना ११. अनुप्रेक्षा १२. एकाग्रता" कायोत्सर्ग कायोत्सर्ग सभी प्रकार के ध्यान की अनिवार्य पूर्व भूमिका है। ध्यान में शरीर को पूर्णतः शांत और स्थिर रखना आवश्यक है । यह तभी सम्भव है जबकि शिथिलीकरण के द्वारा शरीर को तनावों से मुक्त कर दिया जाए ।११ ___मानसिक तनाव, स्नायविक तनाव, भावनात्मक तनाव ---इनको मिटाना, तनाव की ग्रन्थियों को खोल देना, यह है कायोत्सर्ग ।११ शिथिलीकरण के बाद कायोत्सर्ग की मुद्रा में लेटे रहें । एक संकल्प के साथ पूरे २३२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy