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(i) पौराणिक आख्यान
पुराणों के अंशभूत कथा विशेष को पौराणिक आख्यान कहते हैं। विभिन्न देवी-देवताओं के चरित माध्यम से हिन्दु संस्कृति के विभिन्न तत्त्व-धर्मदर्शन, भक्ति, ज्ञान, सम्यक् आचरण, तत्त्व मीमांसा आदि की विस्तृत विवेचना होती है। यथा वाराह, वामन, कपिल आदि। ये आख्यान किसी युग में घटित घटनाक्रम को प्रकट करते हैं। इनमें किसी देश या कालविशेष के धार्मिक विश्वास, प्राचीन देवों के चरित, जनता की अलौकिक तथा अद्भुत परम्पराओं एवं सृष्टि-रचना का वर्णन उपलब्ध होता है। (ii) निजधरी आख्यान
जब किसी आख्यान के पात्र देवत्व की कोटि से अलग होकर मनुष्यों की श्रेणी में आता हो तो उस आख्यान विशेष को निजधरी आख्यान कहते हैं । 'निजं धरते धारयति वा' इस व्युत्पत्ति के आधार पर उन्हीं आख्यानों को निजंघरी कहेंगे जिसमें अपने बारे में कुछ कहा गया हो या स्वकीय इतिहास का वर्णन हो। भागवत महापुराण में अनेकों निजधरी आख्यान हैं । यथा-रामाख्यान, कपिलाख्यान आदि । पौराणिक आख्यान निजंधरी के ही विकसित रूप कहे जा सकते हैं। (iii) ऐतिहासिक आख्यान
जिसमें इतिहास तत्त्व की प्रधानता हो उसे ऐतिहासिक आख्यान कहते हैं। अम्बरीष, भगीरथ, बुद्ध आदि के आख्यान इस कोटि में रखे जा सकते हैं। (iv) आध्यात्मिक आख्यान
जिन आख्यानों में ईश्वर, माया, जीव और जगत् के स्वरूप को कथात्मक एवं रूपकात्मक प्रस्तुत किया गया हो उसे आध्यात्मिक आख्यान कहते हैं। पौराणिक आख्यान ही आध्यात्मिक आख्यान भी हैं।
(v) प्रेमाख्यान
जिसमें प्रेम तत्त्व की प्रधानता हो उसे प्रेमाख्यान कहते हैं। श्रीमद्भागवत में तीन प्रेमाख्यान आए हैं ---उषा-अनिरुद्ध, दुष्यन्त-शकुन्तला और पुरुरवा-उर्वशी। बाद के साहित्य में इन्हीं तीन आख्यानों को लेकर अनेक नाटक, काव्य आदि रचे गये हैं। (v) प्रतिपाद्य के आधार पर आख्यानों का वर्गीकरण निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है.----- (क) भक्ति के प्रतिपादक आख्यान
इस वर्ग में वैसे आख्यानों को रखा गया है जिनका मुख्य प्रतिपाद्य भक्ति हैं, अथवा जिनमें भक्ति की सर्वाङ्गीण व्याख्या प्रस्तुत की गई है। ध्रुव, अम्बरीष, नलकुबर-मणिग्रीव, कपिल, नृग, वृत्रासुर, गजेन्द्र, प्रियव्रत, पृथ, गणिका, अजामिल, मार्कण्डेय, प्रह्लाद आदि के आख्यान भक्ति के प्रतिपादक हैं। इनमें भक्ति के विविध रूपों का विवेचन हुआ। नलकुबर-मणिग्रीव का एक श्लोक द्रष्टव्य है, जिसमें षोढा भक्ति का निरूपण किया गया हैखड २०, अंक ३
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