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________________ आख्यान। (iii) आठ, नौ एवं दस अध्यायों वाला एक-एक आख्यान- क्रमशः-वामन, पृथु और कपिलाख्यान । (iii) मुख्यपात्र के आधार पर आख्यानों के सात विभाजन किए जा सकते हैं :(क) देवविषयक आख्यान जिन आख्यानों का सम्बन्ध किसी देवता के चरित प्रतिपादन से है, उन्हें इस संवर्ग में रखा गया है। यथा कच्छप, कल्कि, जय-विजय, धन्वन्तरि, शिव, नरनारायण, नृसिंह, परशुराम, ब्रह्मा, बुद्ध, मत्स्य, वाराह, हंस और हयग्रीव आख्यान । (ख) ऋषि विषयक आख्यान __ ऋषि चरित से सम्बन्धित आख्यानों को इस वर्ग में रखा गया है। यथा जहनु, भुगु. मार्कण्डेय, अवधूत, दीर्घतमा और कपिलाख्यान । (ग) ब्राह्मण विषयक आख्यान __ जिनके मुख्य पात्र ब्राह्मण हैं, उन्हें इस वर्ग में रखा गया है। यथा अश्वत्थामा, द्रोण और ब्राह्मण आख्यान ।। (घ) राजन्य वर्ग से सम्बन्धित आख्यान इस वर्ग में वैसे आख्यानों को रखा गया है जिनका मुख्य पात्र कोई राजवर्ग का पुरुष है । यथा नृग, जनक, वेन, प्रियव्रत, जन्मेजय, अम्बरीष, ययाति, पृथु, दुष्यन्त, उषा-अनिरुद्ध, रन्तिदेव, ऋषभ, पुरुरवा, ध्रुव, शिवि, मांधाता, नग्नजित्, कर्ण, खट्रांग, सगर, राम, नहुष और भगीरथ आख्यान । (ङ) नीच कुलोत्पन्नपात्र विषयक आख्यान नीच कुल के पात्रों से सम्बद्ध आख्यान इस वर्ग में रखे गये हैं। यथा अजामिल, गणिका और निषाद का आख्यान । (च) ग्रह-नक्षत्र विषयक आख्यान __ ग्रहों और नक्षत्रों से सम्बन्धित आख्यानों को इस वर्ग में सम्मिलित किया गया है । यथा चन्द्रमा और राहु-केतु आख्यान । (छ) अन्य आख्यान गन्धर्ब, राक्षस, विद्याधर, पशु और रत्न आदि से सम्बन्धित आख्यानों को इस वर्ग में रखा गया है। यथा नलकुबर-मणिग्रीव, वृत्रासुर, चित्रकेतु, गजेन्द्र और स्यमन्तक आख्यान । (iv) कथावस्तु के स्रोत के आधार पर श्रीमद्भागवतीय आख्यानों को पांच वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : (i) पौराणिक आख्यान (ii) निजंधरी आख्यान (iii) ऐतिहासिक आख्यान (iv) आध्यात्मिक आख्यान (v) प्रेमाख्यान तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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