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बुद्ध, भृगु, दीर्घतमा आख्यान आदि ।
(ग) तृतीय वर्ग
इसमें वैसे आख्यानों को रखा गया है जिनमें १० से २० तक श्लोक हैं । यथा गणिका, चन्द्र, मांधाता और रन्तिदेव आख्यान | (घ) चतुर्थ वर्ग
इसमें २० से ५० श्लोकीय परिमाण वाले आख्यानों को रखा गया है । यथादुष्यन्त शकुन्तला - आख्यान, नग्नजिताख्यान, नलकुबर मणिग्रीव आख्यान, नृगाख्यान, प्रियव्रत - वाराह सगरादि आख्यान ।
(ङ) पंचम वर्ग
इस वर्ग में ५० से १०० श्लोक वाले आख्यानों को रखा गया है । यथा वेन, अम्बरीष, ब्रह्मा, मत्स्य, उषा-अनिरुद्ध, गजेन्द्र, जयविजय परशुराम एवं पुरुरवा - उर्वशी
आख्यान ।
(च) षष्ठ वर्ग
इस वर्ग में १०० से अधिक श्लोक वाले आख्यानों को रखा गया है। नृसिंह, मार्कण्डेय, वामन, शिव, अवधूत, वृत्रासुर, चित्रकेतु, ध्रुव, पृथु आदि आख्यान इस संवर्ग में आते हैं ।
(ii) अध्यायों के आधार पर आख्यानों को पांच वर्गों में विभाजित किया गया
एकाध्यायात्मक आख्यान
जिन आख्यानों का परिमाण केवल एक अध्याय में ही सीमित है, उन्हें इस वर्ग में रखा गया है । यथा गणिका, निषाद, जह, नु, नृग, अश्वत्थामा, भृगु, जनमेजय, जनक, चन्द्र, दुष्यन्त, धन्वन्तरि और नहुषाख्यान ।
(ख) द्वयाध्यायात्मक - आख्यान
इस वर्ग में दो अध्याय परिमाण वाले आख्यानों को रखा गया है । यथा स्यमन्तक, द्रोण, वेण, ययाति, खद्वांग, अम्बरीष, हंस, भगीरथ, अजामिल, उषा-अनिरुद्ध, कर्ण, पुरुरवा - उर्वशी एवं नग्नजित् आख्यान |
(ग) त्रयाध्य: यात्मक आख्यान
तीन अध्यायों में समाप्त होने वाले आख्यानों को इस वर्ग में रखा गया है । यथा कच्छपावधूत, कल्कि, राम, नर-नारायण, बुद्ध, मार्कण्डेय और राहु आख्यान । (घ) चतुराध्यायात्मक आख्यान
चार अध्याय वाले आख्यानों को इस संवर्ग में रखा गया है । यथा गजेन्द्र, शिव, प्रियव्रत, हयग्रीव, ब्रह्मा, चित्रकेतु, मत्स्य, ऋषभ और वाराह आख्यान ।
ङ) अन्य आख्यान
(i) पांच अध्यायों में समाप्त होने वाला एक आख्यान- - वृत्रासुर
आख्यान ।
(ii) छः अध्यायों के परिमाण वाले दो आख्यान - ध्रुव और परशुराम
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ड २०, अंक ३
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