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aret गुणानुकथने श्रवणं कथायां
हस्तौ च कर्मसु मनस्तव पादयोर्न । स्मृत्यां शिरस्तव निवास जगत्प्रणामे
दृष्टि सतां दर्शनेऽस्तु भवत्तनूनाम् ॥
ज्ञान के प्रतिपादक आल्याम
विविध ज्ञान-विज्ञान के निरूपण के लिए जिन आख्यानों का उपन्यास हुआ है उन्हें ही इस संवर्ग में रखा गया है । यथा कपिल आख्यान, अवधूत आख्यान, विदूरआख्यान आदि ।
(ग) वैराग्यमूलक आस्थान
जिनका मुख्य विषय वैराग्य है वैसे ही आख्यानों को इस संवर्ग में रखा गया है । यथा ययाति, गणिका, अवधूत, ब्राह्मण, चित्रकेतु आदि के आख्यान । (घ) लोकमङगल के प्रतिपादक
भागवत में कतिपय आख्यान लोकमङ्गल के प्रतिपादक भी हैं। उनसे श्रीमद्भागवत की माङ्गलिक चेतना का स्पष्ट प्रस्तुतीकरण होता है । यथा रन्तिदेव, भगीरथ, कच्छप, कल्कि, वाराह, वामन आदि आख्यानों का उपस्थापन लोकोद्धार किंवा लोककल्याण के लिए किया गया है।
(ङ) अवतार के प्रतिपादक आख्यान
कुछ ऐसे आख्यान भी हैं, जो भगवान् विष्णु के विभिन्न अवतारों का प्रतिपादन भी करते हैं । उनमें अवतार के कारण, अवतार का प्रयोजन आदि विवेचित है । यथा कच्छप, कल्कि, वाराह, वामन, हयग्रीव, शिव, राम आदि के आख्यान ।
(च) विलास वर्णन प्रधान
कुछ आख्यानों में केवल भोग-विलास की प्रधानता है । शकुन्तला एवं पुरुरवा - उर्वशी के आख्यान ।
संदर्भ
१. श्रीमद्भागवतमहापुराण, ३.८.८
२. तत्रैव २.७.५१
३.
२.८.२८
४.
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८.४.१३
५.
३.५.२
६. पाणिनि, अष्टाध्यायी. ३.३.११७
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७. आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. १३९
८. पाणिनि, अष्टाध्यायी - क्रमशः १.४.९, ८.२.१०५, और
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९. महाभारत ३.१८.९
१०. बाणभट्ट, शब्दरत्नाकर, श्लोक संख्या १८३०
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यथा चंद्रमा, दुष्यन्त
- वाचस्पत्यम् पृ. ६१४ तथा साहित्य दर्पण ६.३२५
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- ( अगले अंक में समाप्य )
तुलसी प्रज्ञा
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