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समस्त देवताओं के शरीर से प्रकट पुंजीभूत तेज से ही देवी का प्रादुर्भाव माना गया है । "
आदिशक्ति परमेश्वर की उन प्रधानशक्तियों में से एक है, जिसका रूप आवश्यकतानुसार समय-समय पर विभिन्न रूपों में प्रकट होता है । वेद में विराट् हिरण्यगर्भ और अव्याकृत अर्थात् अधिष्ठात्री देवतारूप ब्रह्मा, विष्णु एवं रुद्र का वर्णन विभिन्न रूपों को प्रकट करने के लिए किया गया है ।
मधु कैटभ वध के लिए स्वयं देवता आदिशक्ति देवी का स्तवन करने विष्णु को जगाते हैं । असुरों के विनाशार्थ ही विष्णु के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय तथा वक्षःस्थल से निकल कर ही देवी प्रकट हुई ऐसा विवरण मिलता है ।"
देवी के विविध रूप
महाकाली
त्रिगुणमयी परमेश्वरी ही सबका आदिकरण है । यही दृश्य-अदृश्य रूप से पूरे विश्व में व्याप्त है । इसे विष्णु की योग-निद्रा कहा गया है ।'
मधुकैटभ दानव का वध करने हेतु यही आदिशक्ति देवी महाकाली कही गई । उक्त दानव के वध हेतु यह अव्यक्तजन्मा देवी-देवताओं द्वारा पूजित भगवान् विष्णु के नेत्र, मुख, नासिका आदि से उत्पन्न हुई ।
देवीभागवत में मधुकैटभ का वध करने हेतु देवी को प्रसन्न करने के लिए उपासना की गई है । "
महालक्ष्मी
यह देवी अनन्त कान्तिमय साक्षात् महालक्ष्मी है । इस रूप में देवी का मुख गोरा, भुजायें श्यामवर्ण, स्तन मण्डल श्वेत, चरण लाल, पिंडली श्यामवर्ण है । यही महिषासुर वध करने वाली हैं । '
इस रूप में देवी की उत्पत्ति समस्त देवताओं के निकले हुए तेज का पुञ्जीभूत होना है ।
महादेव के निकले तेज से देवी का मुख, यम से केश, विष्णु के तेज से बाहु, चन्द्रमा से स्तन, इन्द्र के तेज से मध्यप्रदेश, वरुण से जंघा, पृथ्वी से नितम्ब, ब्रह्मा से चरण, सूर्य से अंगुली, कुबेर से नासिका, प्रजापति के तेज से दांत, पावक से नेत्र, दोनों सन्ध्याओं द्वारा भृकुटि, वायु द्वारा कान आदि प्राप्त हुए । 2 देवताओं द्वारा पूजित देवी महालक्ष्मी रूप में उपस्थित हुई । धनुष की प्रत्यंचा की टंकार मात्र से गया । १३
महिषासुर के समक्ष युद्ध हेतु सम्पूर्ण पाताल कम्पायमान हो
सर्वप्रथम महिषासुर का चिक्षुर नामक सेनापति युद्ध हेतु आया। देवी ने उनके शस्त्र लीलापूर्वक ही नष्ट कर दिये । देवी के निःश्वास द्वारा सैकड़ों गण उत्पन्न होकर असुरों से युद्ध करने लगे। देवी का वाहन सिंह भी असुर मर्दन करने लगा। देवी के इस रूप को देखकर सभी देवता पुष्प वृष्टि करते हैं ।"
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तुलसी प्रज्ञा
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