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चण्डिका देवी चराचर जगत् को विस्तारित करने वाली है। समस्त देवताओं द्वारा पूजित देवी समस्त जगत की पालनकर्ता हैं। समस्त पदार्थों का आश्रय स्वरूप, जगत् की अंशभूत हैं। स्वाहा और स्वधारूप से उच्चारित देवी की उपासना अचित्य है।
ऋक्, यजुः व सामवेद की आश्रयस्वरूप देवी समस्त जगत् की पीड़ा हरण करने वाली है । देवी शक्ति अतुलनीय है ।" महासरस्वती
__ एकमात्र सत्त्वगुण प्रधान पार्वती ही महासरस्वती है। यही शुम्भ-निशुम्भ का वध करने वाली है ।" उक्त असुर के वध हेतु देवी के शरीर से सो शिवाओं के सदृश चण्डिका शक्ति उत्पन्न हुई। महेश्वर दूत बने, तभी से वह शिवदूती कहलायीं।" आदिशक्ति के आयुध
आदिशक्ति देवी का पदार्पण असुरों के मर्दन हेतु ही हुआ है। देवताओं द्वारा अपने अस्त्र देवी को दिये गये।
शिवजी द्वारा शूल, नारायण द्वारा चक्र, वरुण द्वारा शंख, वायु द्वारा धनुषबाण से युक्त तरकस. इन्द्र द्वारा वज्र, ऐरावत द्वारा घण्टा, यम के कालदण्ड से दण्ड, वरुण द्वारा पाश, दक्षप्रजापति द्वारा अक्षमाला, ब्रह्माजी द्वारा कमण्डल, दिवाकर द्वारा किरणें, काल द्वारा निर्मल खड्ग चर्म, समुद्र द्वारा मोतियों का हार, विश्वकर्मा द्वारा अनेक अस्त्र, समुद्र द्वारा पुष्पहार, कुबेर द्वारा सुरापान पात्र आदि प्रदान किये गये । देवताओं द्वारा स्तवन
देवताओं द्वारा देवी की स्तुति की गयी है । देवी, महादेवी, शिवा, प्रकृति, भद्रा, रौद्रा, नित्या, गौरी, धात्री, कृत्या, कल्याणी, बुद्धिरूपा, सिद्धिरूपा, लक्ष्मीरूपा, दुर्गा, दुर्गापरा, सर्वकारिणी, कृष्णा आदि नामों से देवी की उपासना की गई।
जगत् की प्रतिष्ठा स्वरूप देवी विष्णुमाया कही गई है। समस्त प्राणियों में चेतनास्वरूप, बुद्धिरूप, निद्रास्वरूप, समस्त विपदाओं का हरण करने वाली देवी की आराधना की गई है । दुर्गासप्तशती में देवी आराधना
श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहासादि शास्त्रों में इस गुणमयी मायाशक्ति को प्रकृति, मूलप्रकृति, माहामाया, योगमाया कहा गया है। यही शक्ति माहेश्वरी भी कही गई है। दुर्गासप्तशती में "अर्गलास्तोत्रम्' के अन्तर्गत देवी का जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा तथा स्वधा आदि नामों से स्तवन किया गया है ।२२
हे चतुमुर्ख ब्रह्माजी द्वारा प्रशंसित चार भुजाधारिणी परमेश्वरी ! मुझे रूप, जय प्रदान करो।
खण्ड २०, अंक ३
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