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है । प्राकृत भाषा में प्रवेश कराने वाली अब तक की कृतियों में यह श्रेष्ठ कृति कही जा सकती है। जयत्थई-प्राकृत रचना
तेरापंथ के चौथे आचार्य श्रीमज्जयाचार्य की स्तुति रूप में मुनिश्री कर्मचन्द द्वारा रचित 'जयत्थुई' तेरापंथ धर्मसंघ में प्राकृत भाषा की प्रथम रचना कही जा सकती है। इसमें सोलह गाथाएं हैं। इसमें शब्द लालित्य भाषा गांभीर्य, उपमा, अलंकार, अनुप्रास आदि का भी सम्यक् निदर्शन प्राप्त होता है। उदाहरण स्वरूप इसकी दो गाथाएं हैं
परिग्रह वाऊ पुट्ठो मेरुव्व अप्पकंपओ। सुहं वा जइ वा दुक्खं सहइ समचेयसा ॥ सूरो व दित्त तेएणं ससीव सीयलो विऊ ।
महोदहीव गंभीरो कुत्तियावण सारिसो॥ इसमें रचनाकाल अथवा रचनास्थल का उल्लेख नहीं है। अतः इसकी रचना कब हुई, यह प्रामाणिक रूप से कहना कठिन है किन्तु मुनिश्री कर्मचन्द ने जयाचार्य के आचार्यकाल में ही इसकी रचना की थी, ऐसा प्रतीत होता है। अत्तकहा
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्ल की प्राकृत भाषा में द्वात्रिंशिका के रूप में निबद्ध एक कृति है - अत्तकहा । इसमें जीवनगत संस्कारों, विचारों, उपदेश आदि का सम्यग् निरूपण हुआ है। इसे एक अनुभव कृति कहा जा सकता है। अनुभव को व्यक्ति सीखता है, प्रेरणा प्राप्त करता है और वह दूसरों के लिए प्रेरक बन जाता है। प्रौढ़ और प्रांजल भाषा में रचित यह कृति पाठकों की प्रसंत्ति और प्रेरणा का निमित्त बन सकेगी, यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा। पाइयसंगहो
प्राकृत भाषा का अधिकांश साहित्य जैनों द्वारा रचित है। जैन तीर्थंकर प्राकृत अर्धमागधी में प्रवचन करते थे। उनकी वाणी का संग्रह आगम ग्रन्थों में ग्रथित हुआ है। श्वेताम्बर जैनों के आगम तथा उनके व्याख्याग्रस्थ नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि साहित्य अर्धमागधी भाषा में रचित हैं। दिगम्बर जैन साहित्य षट्खंडागम, कषायपाहुड, समयसार आदि शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध हैं।
प्राकृत भाषा के आर्ष ग्रन्थों में अध्यात्म, संस्कृति, इतिहास, लोकव्यवहार, तत्त्वदर्शन, गणित, भूगोल आदि की ज्ञानवर्धक सामग्री विद्यमान है किन्तु जनसाधारण की इस ओर रुचि कम होने के कारण इसके लाभ से लोग वंचित हैं। प्राकृत भाषा के अध्ययन के प्रति रुचि जागृत करने के लिए मुनिश्री विमलकुमार ने विभिन्न आगम ग्रन्थों का दोहन कर 'पाइयसंग्रहो' नामक इस कृति को तैयार किया है ।
प्रस्तुत कृति में दशवकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, प्रश्न व्याकरण, स्थानांग, भगवती, दशाश्रुतस्कन्ध, ज्ञाताधर्मकथा, अंतकृद्दशा, राजप्रश्नीय आदि आगमों के सन्दर्भ दिए गए हैं। सन्दर्भो के नीचे तत्सम्बन्धी आगमों के प्रमाण भी दिए गए हैं।
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तुलसी प्रज्ञा
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