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________________ २. दशवकालिक भाष्य ३. उत्तराध्ययन भाष्य ४. बृहत्कल्प भाष्य ५. पंचकल्प भाष्य ६. व्यवहार भाष्य ७. निशीथ भाष्य ८. जीतकल्प भाष्य ९. ओधनियुक्ति भाष्य १०. पिंडनियुक्ति भाष्य बहत्कल्प और ओपनियुक्ति पर दो-दो भाष्य और मिलते हैं लघु भाष्य और बृहद् भाष्य । इनकी भाषा प्राकृत है। ये भी पद्यबद्ध हैं। विशेषावश्यक भाष्य और जीतकल्प-ये आचार्य जिनभद्रगणी (वि. सातवीं शताब्दी) की रचनाएं हैं। बृहत्कल्प लघुभाष्य और पंचकल्प महाभाष्य---ये संघदासगणी (वि. छठी शताब्दी) की रचनाएं हैं। ___आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा लिखा गया जैनागम आयारो का भाष्य एक महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय ग्रन्थ है । आयारो पर नियुक्ति, चूर्णि, टीका और टब्बा तो उपलब्ध होते हैं किन्तु उस पर भाष्य आज तक किसी ने नहीं लिखा । ढाई हजाई वर्षों में जो कार्य नहीं हुआ, वह आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा सम्पन्न हुआ । इससे साधना और आचार के अनेक नये रहस्यों का उद्घाटन हुआ है। वर्तमान के सन्दर्भ में आगमों की प्रासंगिकता स्पष्ट हुई है। अध्यात्म के प्रति आस्था का दृढीकरण हुआ है.। यह भाष्य आयारो के मौलिक अर्थ का स्पर्श करने में सहायक सिद्ध होगा। इसका हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुका है। गाथा ___ गाथा भगवान् महावीर के जीवनदर्शन, प्रासंगिक घटनाओं, कथाओं, रूपकों आदि का समन्वित संकलन ग्रन्थ है । गीता, धम्मपद और समणसुत्तं की श्रेणी के इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की आयोजना योगक्षेम वर्ष में हुई। भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर निर्मित समणसुत्तं को जैन शासन के चारों सम्प्रदायों ने मान्यता प्रदान की किन्तु उसका मुख्य भाग दार्शनिक है और कुछ भाग आचार शास्त्रीय । उसमें धर्मकथानुयोग का भाग नहीं है। धर्मकथा के द्वारा कही हुई बात जनसाधारण के लिए भी ग्राह्य होती है और उसमें विद्वज्जनों का भी आकर्षण होता है । गाथा में धर्मकथानुयोग होने के कारण इसके प्रति सबकी मंगलभावनाएं रही हैं। गणाधिपति श्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ के निर्देशन में तैयार इस ग्रन्थ में अनेक विषय हैं । वे सब अनेकांत और समता की परिधि में सिमटे हुए हैं। इसमें ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग जैसे एकांतवादी दृष्टिकोणों का समन्वय हुआ है। इसका नाम 'गाथा' है जिसका आधार सूयगडो का गाथा अध्ययन है। गाथा गेय १८८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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