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संस्कृत में तीन प्रकार के शब्द माने गए हैं-रूढ़, यौगिक और मिश्र। इनमें रूढ़ शब्द देशी के अन्तर्गत आते हैं। ___आचार्य हेमचन्द्र ने देशी नाममाला में देशी शब्द को परिभाषित करते हुए लिखा है-जो शब्द व्याकरण ग्रन्थों में प्रकृति, प्रत्यय द्वारा सिद्ध नहीं हैं तथा जो शब्द लक्षण आदि शब्द शक्तियों द्वारा दुर्बोध हैं और अनादिकाल से लोकभाषा में प्रचलित हैं, वे सब देशी हैं। महाराट्र, विदर्भ आदि नाना देशों में बोली जाने वाली नाना भाषाएं होने से देशी शब्द अनन्त हैं।
त्रिविक्रम के अनुसार आर्ष और देशी शब्द विभिन्न भाषाओं के रूढ प्रयोग हैं अतः उनके लिए व्याकरण की आवश्यकता नहीं है ।
इस प्रकार समग्र विवेचना के आधार पर कहा जा सकता है कि देशी शब्द का यह अर्थ नहीं कि वे शन्द जो देश विशेष में प्रचलित हों किन्तु वे सभी शब्द देशी हैं जिनका स्रोत संस्कृत में नहीं है चाहे फिर वे किसी देश या भाषा के क्यों न हों।
वर्तमान में देशी शब्दों का सबसे बड़ा कोश आचार्य हेमचन्द्र का देशी नाममाला के नाम से मिलता है । प्रस्तुत देशी शब्दकोश उस परम्परा में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । इसका निर्माण सहज, सुगम और वैज्ञानिक विधि से किया गया है। एक ही अर्थ के वाचक भिन्न शब्दों के सन्दर्भ में अन्य कोशों की भांति 'देखो' का निर्देश न कर पाठक की सुविधा के लिए उस शब्द का अर्थ वहीं दे दिया गया है। अन्यान्य कोशों में कहीं-कहीं एक शब्द का अर्थ देखने के लिए तीन-चार शब्द देखने पर भी अर्थ नहीं मिलता किन्तु प्रस्तुत कोश में सुविधा की दृष्टि से सभी शब्दों का अर्थ प्रायः उनके सामने ही दे दिया है ।
इस देशी शब्दकोश के साथ दो परिशिष्ट भी संलग्न हैं। प्रथम परिशिष्ट अवशिष्ट देशी शब्दों का है। इसमें आगमेतर प्राकृत तथा अपभ्रश ग्रन्थों के ३३८१ देशी शब्दों का समावेश है। दूसरा परिशिष्ट देशी धातुओं से सम्बन्धित है। इसमें १७४५ धातुएं हैं । सन्दर्भ सहित तथा बिना सन्दर्भ वाली दोनों प्रकार की धातुओं को साथ में ही रखा गया है। यह परिशिष्ट छोटा होते हुए भी व्याकरण एवं धातु ज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
गणाधिपति श्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ के कुशल निर्देशन में लगभग पांच वर्षों के श्रम से सम्पादित यह देशी शब्दकोश विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी सामग्री बनकर सामने आया। साध्वी अशोकश्री, साध्वी विमलप्रज्ञा, साध्वी सिद्धप्रज्ञा तथा समणी कुसुमप्रज्ञा का मौलिक श्रम इसके साथ लगा है। मुनिश्री दुलहराज का योग भी इसके साथ जुड़ा है। इसकी शीघ्र सम्पूर्ति में यह बहुत बड़ा निमित्त बना है। आयारो भाष्य
आगमों और नियुक्तियों के आशय को स्पष्ट करने के लिए उनके भाष्य लिखे गए। अब तक दस भाष्य उपलब्ध हैं
१. आवश्यक भाष्य
खंड २०, अंक ३
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