SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरापंथ धर्मसंघ में इसके माध्यम से प्राकृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन का क्रम चालू है। विद्यार्थियों के अध्ययन की सुविधा के लिए इसके सम्पादन में मुनिश्री श्रीचन्द 'कमल' ने उल्लेखनीय परिश्रम किया है । आगम शब्दकोश जैन आगमों में विशाल ज्ञानराशि भरी हुई है। उसका उपयोग बहुत कम हुआ है । वैज्ञानिक दृष्टि से उस पर अन्वेषण और अनुसन्धान भी लगभग नहीं की तरह हुआ है। वर्तमान सन्दर्भ में उसे उपेक्षित ज्ञान राशि कहा जा सकता है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विद्वानों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। कुछ कार्य भी प्रारंभ हुआ किन्तु अत्याधुनिक साहित्य के अभाव में कार्य करने की पर्याप्त सुविधा अभी तक नहीं है । आधुनिक शैली में काम करने के लिए सबसे पहली अपेक्षा शब्दकोश की है । जैन आगमों की भाषा प्राकृत है। प्राकृत के अनेक शब्दकोशों में सिर्फ दो प्राचीन शब्दकोश वर्तमान में उपलब्ध हैं। उनमें पहला है -कवि धनपाल का पाइअलच्छिनाममाला और दूसरा है आचार्य हेमचन्द्र रचित देशी नाममाला। पर उनके आधार पर आगम सूत्रों का अनुसन्धान कार्य सम्पन्न नहीं किया जा सकता। उनकी उपयोगिता अवश्य है पर वे पर्याप्त नहीं हैं। वर्तमान में प्राकृत का एक शब्दकोश है पं. हर गोविन्ददास का 'पाइय सद्दमहण्णवो।' दूसरा है स्थानकवासी मुनि रतनचन्दजी का 'अर्धमागधी शब्दकोश ।' तीसरा है राजेन्द्रसूरि का 'अभिधान राजेन्द्रकोश ।' पाइय सद्दमहण्णवो प्राकृत भाषा का एक अच्छा शब्दकोश है। इस कोटि का दूसरा प्राकृत शब्दकोश वर्तमान में उपलब्ध नहीं है पर इस वास्तविकता को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि उसमें आगमों के लगभग पचास प्रतिशत शब्द संगृहीत किए गए होंगे। जो शब्द ग्रहण किए गए हैं उनमें भी अनेक शब्द अशुद्ध हैं। उक्त शब्दकोश में प्रमाण स्थल भी प्रायः एक-एक दिया गया है । शोधकर्ताओं के लिए समस्त प्रमाण स्थलों का निर्देश अपेक्षित है। उनमें निरुक्त और सन्दर्भ पाठ भी नहीं दिए गए हैं। अर्धमागधी कोश में पाइयसद्दमहण्णवो की तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं है। अभिधान राजेन्द्रकोश आकार में बहुत बड़ा है किन्तु उसका प्रकार वैज्ञानिक नहीं है । इस प्रकार तीनों कोशों के होते हुए भी आगम अनुसन्धान में उपयोगी बन सके, ऐसे आगम शब्दकोश की अपेक्षा निरन्तर महसूस की जाती रही। प्रस्तुत आगम शब्दकोश उस अपेक्षापूर्ति का ही एक उपयोगी उपक्रम है । इसका नाम आगम शब्दकोश है अतः स्पष्ट है कि यह प्राकृत शब्दकोश न होकर इसकी सीमा में आगम साहित्य ही सम्मिलित है। ई. सं. १९५५ में जब से आगम सम्पादन कार्य का प्रारंभ हुआ, उस समय भी आगम शब्दकोश की परिकल्पना थी किन्तु संशोधित आगम सूत्र उपलब्ध नहीं थे। अतः उस समय यद्यपि आगमों की शब्दसूचियां तैयार कर ली गई थी किन्तु अपरिशोधित पाठ के कारण वे उपयोगी सिद्ध नहीं हुई। सन् १९८० में पाठ संशोधन का कार्य जब पूरा हुआ तब पूर्वकृत शब्दसूचियों को शब्दकोश में बदलने की आवश्यकता १८४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy