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________________ २. प्राकृत प्रकाश वररुचि ई. ३-४ शताब्दी ३. प्राकृत शब्दानुशासन पुरुषोत्तम ई. १२वीं शताब्दी ४. सिद्ध हेम शब्दानुशासन आचार्य हेमचन्द्र ई. १२वीं शताब्दी ५. प्राकृत शब्दानुशासन त्रिविक्रम ई. १३वीं शताब्दी ६. प्राकृत कल्पतरु राम शर्मा तर्कवागीश ई. १५वीं शताब्दी ७. प्राकृत रूपावतार सिंहराज ई. १५-१६वीं शताब्दी ८. षड्भाषा चन्द्रिका लक्ष्मीधर ई. १६वीं शताब्दी ९. प्राकृत चन्द्रिका शेष कृष्ण ई. १६वीं शताब्दी १०. प्राकृत मणि दीप अप्पय दीक्षित ई. १६वीं शताब्दी ११. प्राकृत सर्वस्व मार्कण्डेय ई. १६वीं शताब्दी १२. जैन सिद्धांत कौमुदी मुनि रत्नचन्द ई. १७वीं शताब्दी १३. पिशेल का प्राकृत व्याकरण आर. पिशेल ई. १९वीं शताब्दी इन प्राकृत व्याकरणों में वररुचि का 'प्राकृत प्रकाश' और आचार्य हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण (सिद्धहेमशब्दानुशासन का आठवां अध्याय) दोनों अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । अपभ्रश और पैशाची के अध्ययन की दृष्टि से मार्कण्डेय का प्राकृत-सर्वस्व भी अत्यन्त उपयोगी है । आधुनिक भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से डॉ. आर. पिशेल का प्राकृत व्याकरण सर्वाधिक उपयोगी है। प्रस्तुत ग्रन्थ 'तुलसी मंजरी' गणाधिपति श्री तुलसी के नाम पर आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति है। इसका रचनाकाल वि. सं. १९९८ है। यह आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण की एक बृहत् प्रक्रिया है। अष्टाध्यायी का क्रम विद्यार्थी के लिए सहजगम्य नहीं होता। उसके लिए प्रक्रिया का क्रम अधिक उपयोगी होता है । प्रक्रिया में शब्दों के सिद्धिकारक सूत्र पास-पास मिलने से विद्यार्थी को समझने में सुगमता होती है । उदाहरण स्वरूप प्राकृत का एक शब्द है 'मरहटें ।' इसका संस्कृत रूप है 'महाराष्ट्र ।' मरहट्ठ शब्द को सिद्ध करने के लिए आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के दो सूत्र लम्बे व्यवधान पर हैं-११६९ और २।११९। तुलसी मंजरी में वे दोनों सूत्र पास-पास में-सूत्र १३६,१३७ हैं। ____ इस कृति में अपेक्षित टिप्पण भी दिए गए हैं। सूत्रों में आगत प्राकृत शब्दों की संस्कृत छाया भी दी गई है। प्रक्रिया की दृष्टि से सन्धि-प्रकरण, स्वरान्त पुल्लिग, स्वरान्त स्त्रीलिंग, स्वरान्त नपुंसक लिंग, युष्मदस्मत् प्रकरण, अव्यय प्रकरण, स्त्री प्रत्यय प्रकरण, कारक प्रकरण, समास प्रकरण, तद्धित प्रकरण, लिंगानुशासन, गणप्रकरण, जिन्नन्त प्रकरण, भावकर्मप्रक्रिया प्रकरण, कृदन्त प्रकरण आदि के रूप में सूत्रों का वर्गीकरण किया गया है। तुलसी मंजरी का हिन्दी अनुवाद भी तैयार किया हुआ है किन्तु वह प्रकाशित नहीं है । इसके सात परिशिष्ट हैं१. अकारादिक्रमेण सूत्राणि ५. देशी धातवः २. प्राकृत शब्द रूपावलिः ६. आर्ष प्रयोगाः ३. धातु रूपावलिः ७. गणाः ४. धात्वादेशाः खंड २०, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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