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आचारांग नियुक्ति
पिंड नियुक्ति दशवकालिक नियुक्ति
व्यवहार नियुक्ति उत्तराध्ययन नियुक्ति
निशीथ नियुक्ति आवश्यक नियुक्ति और ओघ नियुक्ति का कार्य चल रहा है। अंगसुत्ताणि के तीनों भागों की शब्दसूची 'आगम शब्दकोश' में सप्रमाण प्रकाशित हुई है। शेष इक्कीस आगमों की शब्दसूचियां उन-उन आगमों में संलग्न हैं।
__ पाठ संशोधन के अतिरिक्त आगमों का टिप्पण सहित हिन्दी अनुवाद और सम्पादन का कार्य भी द्रुतगति से चला। इस दृष्टि से सम्पादित होकर अब तक जो ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, वे हैंदसवेआलियं
सूयगडो भाग १,२ उत्तरज्झयणाणि
ठाणं आयारो
समवाओ भगवई के दो ग्रन्थ तैयार हैं, तीसरे का कार्य चल रहा है ।
इनके अतिरिक्त दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन तथा उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन-ये दो अनुशीलन मूलक ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं। धर्म प्रज्ञप्ति खंड १ (दशवकालिक वर्गीकृत), धर्म प्रज्ञप्ति खंड २ (उत्तराध्ययन वर्गीकृत) भी प्रकाश में आ चुके हैं। सुधी अध्येताओं के लिए इससे अध्ययन और शोध की पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो सकती है। गणाधिपति और आचार्यश्री के अतिरिक्त मुनिश्री सुमेरमल 'सुदर्शन', मुनिश्री मधुकर, मुनिश्री हीरालाल, मुनिश्री श्रीचन्द, मुनिश्री दुलहराज आदि का विशिष्ट योगदान इस कार्य में रहा है। प्राकृत व्याकरण (तुलसी मंजरी)
प्राकृत भाषा संस्कृत से पूर्व है या उत्तर-यह विषय बहुत चर्चित रहा है । यदि पाणिनि का व्याकरण संस्कृत भाषा का मानदंड है तब संस्कृत प्राकृत से पूर्ववर्ती नहीं है । वैदिक संस्कृत और प्राकृत - दोनों समवयस्क हैं । अतः उनमें पौर्वापर्य नहीं खोजा जा सकता । आगमों में कहा है-भगवं चणं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ -~-तीर्थंकर अर्धमागधी भाषा में अपना प्रवचन करते हैं। इस सन्दर्भ से प्राकृत की कालमर्यादा कम से कम तीन हजार वर्ष की है। ढाई हजार वर्ष पहले भगवान् महावीर ने जिस प्राकृत में प्रवचन किया था उस भाषा के विकास में कम से कम पांच सौ वर्ष तो लगे होंगे।
प्राकृत साहित्य ढाई हजार वर्ष पुराना उपलब्ध है। आयारो के विषय में कहा गया है कि वह प्राचीनतम आगम है। महावीर की मूलवाणी उसमें उपलब्ध है । प्राकृत व्याकरण के विषय में आगम-साहित्य में उल्लेख तो है पर कोई भी आगम कालीन प्राचीन प्राकृत व्याकरण उपलब्ध नहीं है। उपलब्ध प्राकृत व्याकरणों का कालक्रम इस प्रकार हैनाम
कर्ता १. प्राकृत लक्षण
चण्ड
ई. २-३ शताब्दी
रचनाकाल
१८२
तुलसी प्रज्ञा
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