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________________ लिए बढ़ता हुआ मोह है, बढ़ती हुई लालसाएं हैं। इस प्रकार परिग्रह के कई कारक तत्त्व हैं जिन्हें निम्न रूप में रखा जा सकता है :ऐतिहासिक तत्त्व जिस परम्परा के चिंतक परिग्रह से सर्वथा निलिप्त होकर विचरे, जिनके उपदेशों में सबसे सूक्ष्म व्याख्या परिग्रह के दुष्परिणामों की हुई, उसी परम्परा के अनुयायियों ने परिग्रह को अत्यधिक पकड़ा । भौतिक समृद्धि के कर्णधारों में जैन समाज के श्रावक अग्रणी हैं। भगवान महावीर के समय और मध्य युग के शाह और साहकार प्रसिद्ध हैं। वर्तमान युग में भी जैन धर्म में श्रीमंतों की कमी नहीं है। ढाई हजार वर्षों के इतिहास में देश की शिक्षा और संस्कृति इन श्रेष्ठ जनों के आर्थिक अनुदान से संरक्षित हुई है । फलतः यह श्रेष्ठजनों का धर्म क्रमशः बनता गया। विभिन्न प्रकार के दानों द्वारा परिग्रह अर्थात् संग्रह को अपरोक्ष स्वीकृति मिलती रही। इस तरह परिग्रह और धर्म एक-दूसरे के बराबर आकर खड़े हो गए । मनौवैज्ञानिक तत्त्व परिग्रह का दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक है। हर व्यक्ति सुरक्षा में जीना चाहता है । सुरक्षा निर्भयता से आती है और निर्भयता पूर्णता से। व्यक्ति अपने शरीर की क्षमता को पहचानता है, उसे अंगरक्षक चाहिए, सवारी चाहिए, धूप और वर्षा से बचने के लिए महल चाहिए और वे सब चीजें चाहिए जो शरीर की कोमलता को बनाये रछे । इसीलिए इस जगत् में अनेक वस्तुओं का संग्रह है। शरीर की अपूर्णता वस्तुओं से पूरी की जाती है। शरीर के सुख का जिसे जितना अधिक ध्यान है, वह उतनी ही अधिक वस्तुओं के संग्रह का पक्षपाती है । इन वस्तुओं के सामीप्य से व्यक्ति निर्भय वनना चाहता है । धर्म, दान-पुण्य उसके शरीर को स्वर्ग की सम्पदा प्रदान करेंगे, इसलिए उसने धर्म को भी वस्तुओं की तरह संग्रह कर लिया है। वस्तुओं को उसने अपने महल में संजोया है, धर्म को अपने बनाये हुए मन्दिर में रख दिया है । इस तरह, इस लोक तथा परलोक दोनों जगह परिग्रही अपनी सुरक्षा का इंतजाम करके चलता है। पारिवारिक तथा सामाजिक तत्त्व परिग्रह के प्रति इस आसक्ति के विकसित होने में आज के परिवार की युवा पीढ़ी भी एक कारण है । पहले व्यक्ति अपने परिवार तथा सम्पत्ति के प्रति इसलिए ममत्व को कम कर देता था कि उसे विश्वास होता था कि उसकी संतान परिवार तथा व्यापार को सम्हाल लेगी। किन्तु परिवार के प्रधान को आज की युवा पीढ़ी में यह विश्वास नहीं रहा क्योंकि पढ़े-लिखे लड़के-लड़कियों को भी उचित रोजगार नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में वह अपने लिए तो परिग्रह करता ही है, पुत्र-पुत्री में ममत्व होने से उसके लिए भी जोड़कर रख जाना चाहता है । न केवल पुत्र-पुत्री अपितु बह तथा दामादों का पोषण भी पिता के ऊपर आ गया है । ऐसी स्थिति में यदि वह परिग्रह न करे तो करे क्या । युवा पीढ़ी की बढ़ती हुई लालसाएं और घटती हुई आत्मिक १६६ तुलसो प्रर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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