SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकता है कि रामस्नेही सम्प्रदाय एवं तेरापन्थ जैन सम्प्रदाय दोनों ही का समय की मांग के अनुरूप राजस्थान में उद्भव हुआ। जहां तक वेदविहित मार्ग से प्रभावित वैष्णवमार्गी रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रश्न है, यह बहुत कुछ रूढ़िवादी सगुण वैष्णव व्यवस्थाओं से स्वतन्त्र हो चुका था । ऐसी स्थिति में रामचरणजी ने ही बहुत-सी मान्यताएं निर्मित की होंगी जिनमें उनके बालसखा का प्रभाव, भीखणजी से निरन्तर सम्पर्क के कारण जैन दर्शन की ओर उनका झुकाव और उसी क्रम में कुछ अच्छी बातों का अपने पंथ के साधु सन्तों के आचार-व्यवहार में सम्मिश्रण वे कर सके होंगे, यह संभावना दृष्टिगोचर होती है। इसी प्रकार कुछ न कुछ रामस्नेही सम्प्रदाय का भीखणजी के पथ पर भी प्रभाव पड़ा होगा । एक गुरु का अनुशासन, मिथ्याचार का विरोध व जैन कालगणना के अनुसार "पंचम आरा का कठिन काल कहकर चलने वाले शिथिलाचार का विरोध आदि सुधारवादी चेतना भीखणजी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में रामचरणजी से पाई हो, इसकी पर्याप्त संभावना है । १२३९ सन्दर्भ १. गहलोत, सुखवीर सिंह; राजस्थान का संक्षिप्त इतिहास, १९६९, पृ. १११; व्यास, आर. पी.; राजस्थान का बृहत् इतिहास, पृ. १४३ २. वही, पृ. ११२; वही पृ. १५४ ३. शुक्ल, दिनेशचन्द्र एवं सिंह, ओंकारनारायण -- राजस्थान की भक्ति परम्परा एवं संस्कृति, १९९९, पृ. ११७ ४. वही, पृ. ११८ ५. नीरज, जयसिंह; शर्मा, भगवतीलाल : राजस्थान की सांस्कृतिक परम्पराएं, पृ. २९ ६. डॉ. पेमाराम : मध्यकालीन राजस्थान में धार्मिक आंदोलन, १९७७, पृ. २१७ ७. व्यास, आर. पी. - राज० का बृहत् इतिहास, पृ. ४३४; जे. के. ओझा, पृ. ३०२ ८. राज० की सांस्कृतिक परम्पराएं, पृ. ३२ ९. वही, पृ. ३३ १०. स्वामी लालदास - रामचरणजी की परची पद्य - ३०, डॉ. पेमाराम, पृ. २२४ ११. स्वामी केवलराम -श्री रामस्नेही सम्प्रदाय, पृ. ४ १२. कोठारी, एस. आर. जैन भारती, जून १९८९, पृ. ३५४ - वे सिरोही क्षेत्र के अरहटवाड़ा के निवासी थे तथा अपनी योग्यता से अहमदाबाद के शासक मुहम्मदशाह के मन्त्री बन गए । कालांतर में बादशाह के पुत्र कुतुबशाह ने सिंहासन हेतु अपने पिता की हत्या कर दी, यह देखकर लोंकाशाह विरक्त हो गए । १३. रिपोर्ट मर्दुमशुमारी राज मारवाड़, १८९१ ई., पृ. २८२ खण्ड २०, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only १६३ www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy