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________________ विनय मूल धर्म जिन कह्यो, ते जाणे बिरला जीव । रो विनय करे, त्यां दीधी मुक्ति री नींव ॥ १४ सतगुरु सत्संग सभी सगुण-निर्गुण संतों के समान संत रामचरणजी ने भी सत्संग के महत्त्व को समझा व अपने उपदेशों में इसको पर्याप्त स्थान दिया । अच्छे सत्संग का सुन्दर उदाहरण खटीक की छुरी एवं पारस के पत्थर के स्पर्श द्वारा सोना बनने का दिया है ।" जैन धर्म के मुनिजन अपने जैन सम्प्रदाय में ही विहार करते हैं अतः स्वतन्त्र रूप से सत्संग के अवसर कम ही प्राप्त होते हैं, फिर भी भीखणजी ने सद्पुरुष, सद्गुरु के संग रहने व कुगुरु के संग न रहने पर बहुत विस्तार से लिखा है । यथाकुगुरु भड़भूजा सारखा, त्यांरी संगत हो खोटी भाड़ समान । भारी कर्मा जीव तिणखां सारखा, त्यांने झोंके हो खोटी सरधा में आंण ।। आहार संयम संत रामचरणजी के समकालीन सम्प्रदायों में आहार शुद्धि एवं आहार अपरिग्रह पर इतना अधिक जोर नहीं था जितना रामस्नेही सम्प्रदाय में था । जैन समाज जैसा ही अनुशासन इनके पंथ में अपने आप आ गया था क्योंकि रात्रि भोजन वर्जित था, अतः दिन में एक समय ही भिक्षा व गोचरी ये दोनों ही पंथ करते थे तथा आज भी इसका पालन होता है । भीखणजी आहार के लोभ से बचने के लिए कहते हैं अति आहार थी दुःख हुवे, गळं रूप बळ आय । प्रमाद निद्रा आलस हुवे, बळे अनेक रोग हुई जाय ॥ जेहनी रसना बस नहीं, ते खावे सरस आहार । व्रत भांग भागल हुबे, खोवे ब्रह्मव्रत सार ॥" नाम स्मरण क्योंकि दोनों ही महान् सन्तों निराकार साधना का मार्ग चुना था, अत: उन्होंने आराध्य का नाम स्मरण ही मुक्ति का आधार बताया है। जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है संत रामचरण के आराध्य दशरथपुत्र राम नहीं थे, अतः नामस्मरण पर अत्यधिक जोर दिया । यथा- १६२ सुख का सागर राम है, दुःख का भंजनहार । राम चरण तजिए नहीं, भजिये बारम्बार ॥ २७ उधर भीखणजी ने इष्ट की आराधना पर सच्चे मन से ध्यान लगाने पर जोर दिया व कहा इह लोके जस अति घणो, परलोके सुख पाय । मिट जाय ॥ भाव सहित आराधिये, जनम मरण उपर्युक्त प्रमाणों, संदर्भों एवं समता के उदाहरणों के आधार पर यह कहा जा तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only १८ www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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