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१२. स्वाध्याय शिक्षा
सम्पादक डॉ॰ धर्मचन्द जैन, प्रकाशक - सम्यक् ज्ञान प्रचारक मण्डल, बापू बाजार, जयपुर, सन्- १९९४ ।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ परमार्थिक ट्रस्ट, इन्दौर की ओर से सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल ने प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में स्वाध्याय शिक्षा का प्रकाशन शुरू कर रखा है जिसकी प्रस्तुत सत्ताईसवीं पुस्तक प्रकाशित हुई है । इसमें प्राकृत संस्कृत-हिन्दी के तीन खण्डों में ८० पृष्ठ की ज्ञानवर्द्धक सामग्री है । प्राकृत खंड में प्रा० माधव श्रीधर रणदिवे की लघु रचना -- जेत्तिएण मोल्लेण गहिओ तेत्तिएण दिन्नो; श्री गौतमचन्द जैन की संस्कृत खंड में षड्लेश्या स्वरूपम् और हिन्दी खंड में डॉ० महेन्द्र सागर प्रचण्डिया की कृति कर्म की दिशा- विचारोत्तेजक रचनाएं हैं ।
१३. पाइय-कहाओ
- साध्वी कंचनकुमारी, लाडनूं, प्रकाशक --- आदर्श साहित्य संघ, चूरू, प्रथम संस्करण - १९९४, मूल्य - ३० /- रुपये |
तेरापन्थ महासंघ में प्राकृत का लेखन-पाठन होता है । मुनिश्री कर्मचन्द द्वारा रचित जयत्थुइ सम्भवतः ऐसी पहली प्राकृत भाषा की रचना है। वर्तमान में मुनिश्री बुद्धमल्ल ने द्वात्रिंशका की तर्ज पर अन्तकहा लिखी है और मुनिश्री विमलकुमार ने ललियं गचरियं, बंकचूलचरियं देववताचरियं, सुबाहुचरियं, मियापुत्तं, पए सिचरियं आदि कई प्रेरक चरित लिखें हैं जो अभी अप्रकाशित हैं; किन्तु साध्वी कंचनकुमारी की लिखी पुस्तक पाइय-कहायो प्रकाशित हो गई है। प्राकृत भाषा के व्याख्याता डॉ० हरिशंकर पांडेय ने इसका संपादन किया है ।
'पाइयक हाओ' में कुल ११७ कथाएं हैं । साध्वीश्री ने इन कथाओं के कथा तत्त्व को आगम टीका - साहित्य से लिया है। उनकी संरचना इस प्रकार की है कि वे मानवीय गुणों के विकास में सहायक होंगी । संस्कार- परिष्कार और चरित्र-निर्माण में आज के विशृंखलित मानव-जीवन के लिए ये कथाएं पथ-प्रदर्शक का काम कर सकती हैं ।
डॉ० पांडेय ने सम्पादकीय में कथाओं का परिचय दे दिया है । कथाओं को शीर्षक देकर उनका हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया है । आशा है, पुस्तक लोकप्रिय होगी ।
१४. सरण मछंदर गोरख बोलै
- मदनलाल शर्मा, प्रकाशक -श्रद्धा प्रकाशन, वैद्यजी का नोहरा, पिलानी३३३०३१, प्रथम संस्करण, मूल्य-सवा तेरह रुपये ।
राजस्थान में एक कहावत प्रसिद्ध है कि "ग्यान तो गोरख रो, जल तो गंगाजल । रूप तो पार्वती रो, पंडत तो माघ ।।" इसमें गोरखनाथ का प्रभाव पांच सदी तक एकसा बना रहा क्योंकि मछंदरनाथ अर गोरखनाथ, गोरखनाथ भर भरथरी, गोरखनाथ
खण्ड २०, अंक ३
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