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में हिन्दी विभाग के प्रो० शीलचन्द्र जैन द्वारा रचित काव्य पुष्प हैं । श्रीमती कुसुम जैन द्वारा प्रकाशित- युगपुरुष आचार्यश्री विद्यासागर भी प्रो० शीलचन्द्र जैन लिखित है । उनके सरल, सुबोध और श्रद्धा समन्वित ये पुष्प धर्म भावना को बढ़ाने वाले हैं । ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए और वितरण भी निःशुल्क होना चाहिए। उन्होंने पर्यावरण और शाकाहार और पर्यावरण और सदाचार शीर्षक दो प्रकाशनों पर दो-दो रुपये मूल्य लिखा है किन्तु आशा है, वे भी निःशुल्क पुस्तकालयों और वाचनालयों में भेजे गए हैं ।
११. शांत सुधारस
संस्कृत गेय काव्य -- उपाध्याय श्री विनय विजयजी, श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ, पेढ़ी ।
दिन, ज्ञान महोत्सव हेतु
गत १५ सितम्बर से २२ सितम्बर १९९४ तक आठ आचार्य हीरविजयसूरि जैन उपाश्रय, जैनवीसी, सिरोही में शांत सुधारस का गान हुआ और मुनिवर्य श्री पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में रमेश कोठारी, कमलेश चौधरी, अरविन्द मुलिया, विपिन जैन, योगिता शाह और शिल्पा नागौरी ने इस काव्य को राग- निबद्धन किया । इस गान से मन के द्वन्द्वों को विराम मिला आर मानसिक आह्लाद बढ़ा | इसलिए उसे प्रकाशित कर सर्वसुलभ किया गया है ।
वस्तुतः यह भावना प्रबन्ध विक्रमी संवत् १७२३ में रचा गया काव्य है जिसे इस ज्ञान महोत्सव के लिए मुनि विमलसागर ने हिन्दी में अनुवाद किया है और मुनि पद्मविमलसागर ने उसे अपना स्वर प्रदान किया है । कतिपय उदाहरण देखिए
राग भैरवी
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कलयसंसारमतिदारुणम्, जन्ममरणादि भयभीत रे ।
मोहरिपुणे हसगलग्रहम्, प्रतिपदं विपदमुपनीत रे || कलप० राग - शिवरंजनी
शृणु शिवसुखसाधनसदुपापम्, सदुपायं रे सदुपायम् । शृणु शिवसुखसाधन - सदुपायम्,
ज्ञानादिक पावन रत्नत्रय - परमाराधनमनपापम् ॥ शृणु ० राग- पीलू -
विनय विभावय गुणपरितोषम्, विनय विभावय गुणपरितोषम् । निजसुकृताप्तवरेषु परेषु परिहर दूरं मत्सरदोषम् || विनय० राग - अहीर भैरव
सुजनाभजतमुदाभगवन्तम् सुजन भजतमुदा भगवन्तम् । शरणागतजनमिह निष्कारण - करुणावन्तभवन्तं रे ॥ सुजना० राग - मालकौस
विनय विभावय शाश्वतम् हृदि लोकाकाशम् । सकलचराचरधारणे, परिणभदवकाशम् ॥ विनय०
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'तुलसी प्रज्ञा
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