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साहित्य-सत्कार एवं पुस्तक-समीक्षा
१. आचारांग भाष्यम्
( मूलपाठ, संस्कृत भाष्य, हिन्दी अनुवाद, तुलनात्मक टिप्पण, सूत्र - भाष्यानुसारी विषय- विवरण, वर्गीकृत विषय-सूची तथा विविध परिशिष्टों से समलंकृत ) - आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं, प्रथम संस्करण : दिसम्बर १९९४, मूल्य- ३००/- रुपये |
तेरापन्थ धर्मसंघ ने सन् १९५४ से सन् १९८० तक निरन्तर अध्यवसाय करके आगम पाठ - संशोधन और सम्पादन का कार्य किया । अंगसुत्ताणि भाग - १, २, ३, ४ ( खण्ड १ व २) और भाग ५ में बत्तीस आगमों का मूलपाठ प्रकाशित किया । आगमों का टिप्पण सहित हिन्दी अनुवाद का भी उपक्रम हुआ और दशवेआलिय, उत्तरज्भयणाणि आयारो, सूयगडो, ठाणं और समवाओ का मुद्रण हो गया ।
आगमों पर भाष्य - परम्परा में आवश्यक, व्यवहार, निशीथ, जीतकल्प, बृहत्कल्पं, पंचकल्प, उत्तराध्ययन और दशवेकालिक पर भाष्य उपलब्ध हैं। ओघ नियुक्ति और पिडनिर्युक्ति पर भी भाष्य हैं किन्तु प्रथम आगम -- आचारांग पर भाष्य नहीं है । उस पर नियुक्ति, चूर्णि टीका और टब्बा उपलब्ध हैं । निर्युक्ति-आचार्य भद्रबाहु, चूर्णि -- आचार्य जिनदास महत्तर, टीका- शीलांक सूरि की है और टब्बा - माणिक्य शेखर सूरि, जिनहंस सूरि, लक्ष्मी कल्लोल का । बालावबोध के रचयिता पार्श्वचन्द्र सूरि माने जाते हैं । तेरापन्थ के चौथे आचार्य, श्रीमज्जयाचार्य ने आचारांग के प्रथम स्कंध का राजस्थानी में पद्यानुवाद किया है और भी अनेकों अनुवाद और टीकाएं हो सकती हैं किन्तु भाष्य होने की कोई जानकारी नहीं है ।
इस पर गुरुदेव ने आचारांग पर भाष्य निर्माण का संकल्प किया और उनके शिष्य आचार्य महाप्रज्ञ ने सरल संस्कृत में भाष्य का प्रणयन कर दिया । इस भाष्य
साथ हिन्दी अनुवाद, तुलनात्मक टिप्पण, भाष्यानुसारी विषय-विवरण, वर्गीकृत विषय सूची और सूत्रानुक्रम, पद्यांश तथा पद्य एवं पदानुक्रम आदि का विस्तृत विवरण तैयार किया गया । भाष्य को विविध प्रकार से आधुनिक विद्वानों के लिए सुगम बनाने का भी प्रयास किया गया और इसी माह (दिसम्बर ' ९४ ) उसका प्रकाशन हो गया । संप्रति उसका अंग्रेजी अनुवाद प्रगति पर है ।
* डॉ० परमेश्वर सोलंकी
यह एक अतीव महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुआ है। क्योंकि आधारांग भगवान् महावीर के प्रवचन का सार है। यह आगम, आचार का प्रतिपादक सूत्र है । इसमें मोक्ष का उपाय निर्दिष्ट है । इसके अध्ययन से समूचा श्रमण धर्म ज्ञात हो जाता है। बिना
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खंड २०, अंक ३
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