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________________ क्या हूं और क्या नहीं हूं? मैं एक हूं या अनेक ?' किमत्राहं किमनहं किमनेक: किमेकधा ॥ योग्यता "ध्यान द्वात्रिंशिका' में ध्यान का अधिकारी कौन हो सकता है, इस महत्त्वपूर्ण तथ्य पर बहुत थोड़े शब्दों में प्रकाश डाला गया है । ध्यान साधक की योग्यताएं क्या-क्या होनी चाहिए इसकी ओर इंगित करते हुए जिन अर्हताओं का निर्देश किया है वे आधुनिक 'SWOT' की परीक्षण पद्धति से अर्थत पूरा साम्य रखती है। SWOT' के अनुसार लक्ष्य निर्धारण के पूर्व व्यक्ति को अपनी लक्ष्यानुसारी योग्यताओं (Strength), लक्ष्य-सिद्धि में रूकावट करने वाली अपनी कमजोरियों (Weakness),लक्ष्य-प्राप्ति के अवसरों (Opportunity) व मार्ग में आने वाली बाधाओं (Threats) को सर्वप्रथम जान लेना चाहिए। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने ठीक इन्हीं योग्यताओं का निर्देश किया श्रद्धावान् विदितापाय परिक्रांतपरीषहः । भव्यो गुरुभिरादिष्टो योगाचारमुपाचरेत् ।।' अर्थात् ध्यान साधक में श्रद्धा और भव्यता (ध्यान करने की सामर्थ्य) होनी चाहिए । जिसने अपने दोषों को जान लिया है (विदितापायः), जो लक्ष्य सिद्धि के पथ पर आने वाली बाधाओं से जूझ सकता है (परिक्रांतपरीषह) व जिसे गुरु के द्वारा ध्यान करने का अवसर उपलब्ध हुमा है वही ध्यान साधना का अधिकारी हो सकता है । साधन आंतरिक दृष्टि से ध्यान योग की अर्हताओं को अर्जित करने के पश्चात् व्यक्ति अपने सिद्धि क्षेत्र में उतरता है। उतरने के तत्काल बाद उपलब्धि नहीं होती है। उसे उपलब्धि के लिए अनेक अंतरंग एवं बहिरंग प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। "द्वात्रिशिका' में अनेक ऐसे श्लोक हैं जो ध्यान साधक को लक्ष्यसिद्धि के लिए लगभग उन्हीं अंगों की साधना का निर्देश करते हैं, जिनका जिक्र पतंजलि ने 'अष्टांग योग' के रूप में अपने 'पातंजलयोगदर्शनम्' में किया है । अहिंसा __ पतंजलि ने यम के अंतर्गत अहिंसा सत्य आदि के पालन पर बल दिया है "द्वात्रिंशिका" में अहिंसा की प्रधान रूप से चर्चा मिलती है। इसमें कहा तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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